Swargvibha
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पूरी दुनियां पैसे पद पावर के पीछे

 
पुरी दुनियां पैसे पद पावर के पीछे दौड़ रही है, ऐसे में चुप चाप एक किनारे किसी को खड़ा देखती है तो उसे अजूबा सा लगता है।   इंसान खूब मेहनत से पढ़ाई इसीलिए ही तो करता है कि अच्छी नौकरी मिले अच्छी कमाई हो कि जिन्दगी चैन से कटे। अब जबकि जिन्दगी चैन से कट रही है तो किसी को ऐतराज क्यों होना चाहीए। ऐतराज इसलिए है कि जो बेचैन हैं उनकी जिन्दगी चैन से नहीं कट रही है।
Sanjay Sinha उवाच
मैं जी रहा हूं
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मुझसे कई लोग पूछते हैं कि संजय सिन्हा आप करते क्या हैं? 
मैं मन ही मन सोचता हूं कि मैं करता क्या हूं? सुबह जागने के बाद आपके लिए एक कहानी लिखता हूं। उसे पोस्ट करता हूं। फिर उस पर आपकी प्रतिक्रियाएं आती हैं, उन्हें पढ़ता हूं। करने को तो एक यही काम सारे दिन के लिए पर्याप्त है लेकिन मैं क्योंकि बहुत मेहनती हूं और समय का सदुपयोग करना जानता हूं तो मैं कानून की पढ़ाई के लिए कॉलेज जाता हूं। सुबह अपने लिए नाश्ता बनाता हूं। दोपहर के लिए खाना बनाता हूं। रात के खाने की भी तैयारी करता हूं। अपने कपड़े धोता हूं। प्रेस करता हूं। घर की साफ सफाई करता हूं। 
इतना सब कम है क्या? 
बचे समय में राजनीति देखता, समझता हूं। लोगों से मिलता हूं। उनके दुख-दर्द को समझ कर उसे उकेरता हूं। 
और क्या करना चाहिए किसी को? कोई भी और क्या करता है? 
एक आदमी सुबह जागता है, तैयार होता है, काम पर निकल जाता है। वो वहां काम के बदले पैसे कमाता है। कोई दलाली करता है। कोई कपड़े बेचता है। कोई फल, फूल, सब्जी, खाना, जमीन, जायदाद या कुछ भी बेचता है और पैसे कमाता है। कोई नौकरी करता है, उससे उसे महीने में सैलरी मिलती है। मतलब वो किसी तरह भी पैसे कमाता है। बस मैं वही एक काम नहीं करता हूं। 
क्योंकि मैं पैसे कमाने वाला कोई काम नहीं करता हूं इसीलिए शायद लोग मुझसे पूछते हैं कि संजय सिन्हा आप करते क्या है? मतलब जो पैसे कमाने के लिए काम नहीं करता, वो प्रश्न के दायरे में है कि वो करता क्या है? 
मूल काम क्या हुआ? कमाना?
संजय सिन्हा रोज कहानियां लिख कर संतोष कमाते हैं, उसकी कोई अहमियत नहीं? संजय सिन्हा रोज रिश्ते कमाते हैं उसकी कोई गिनती नहीं? वो काम नहीं है? काम क्या है? कमाना? धन कमाना? 
मैंने 32 साल नौकरी की। उससे जितना धन बच सकता था, बचा कर मैं बाकी जीवन जीने योग्य बन चुका हूं। मुझे और पैसे क्यों कमाने चाहिए? बेटा नौकरी करता है, उसे मुझसे पैसों की दरकार नहीं। पत्नी को भी पैसों की ज़रूरत नहीं। मेरा खर्च सीमित हो चुका है। फिर मुझे क्यों कमाना चाहिए? क्या एक उम्र के बाद आदमी को अपनी पसंद का कोई काम, अपने शौक को नहीं जीना चाहिए? सिर्फ जीना नहीं चाहिए? पर प्रश्न वही कि करते क्या हैं? 
करना मतलब कमाना?
मैं कई लोगों से रोज़ मिलता हूं। कोई रेत का ठेका चलाता है। कोई शराब का ठेका। कोई रोड बनाता है। कोई बिल्डिंग। कोई कुछ और बनाता है। इनके पास मोटा पेट होता है, बड़ी गाड़ियां होती हैं और ये और कमाने की जुगत में फंसे दिखते हैं। कई तो मुझसे ही सिफारिश करते हैं कि संजय जी, आपकी पहुंच ‘उन तक’ है, प्लीज कह दीजिए। 
मैं सोचता हूं कि आदमी का मन कब भरेगा? कितने के बाद भरेगा? 
वो कुछ करते हैं। पैसे कमाने के लिए कुछ भी। 
जो पैसे कमाने के लिए कुछ भी करते हैं, उनके पास परिचय है। संजय सिन्हा पैसे कमाने के लिए कुछ भी नहीं करते तो उनके लिए प्रश्न है। क्या करते हैं? 
अरे भाई, उम्र के इस पड़ाव पर लॉ की पढ़ाई कर रहा हूं। ज़िंदगी की आपाधापी में बहुत कुछ नहीं पढ़ पाया तो अब पढ़ रहा हूं। टॉप कर रहा हूं। पर ये किसी गिनती में ही नहीं। किसी से कहता हूं कि पढ़ रहा हूं तो सामने वाले को संजय सिन्हा में कन्हैया कुमार नज़र आने लगते हैं। बुढ़ापे में पढ़ाई? अरे पढते क्यों हो? कमाते क्यों नहीं? मुझे तो लगता है कि कुछ लोग हैरानी से देखते हैं, कुछ लोग समझते हैं कि ज़िंदगी में कुछ कर नहीं पाया इसलिए किताबें थामे बैठा है। 
बताइए एक लड़का, जो बीस साल की उम्र में देश के नंबर एक अखबार में पत्रकार बन गया, जिसने पढ़ाई करते हुए देश के नंबर एक मीडिया संस्थान (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन, नई दिल्ली) में दाखिला पाया, जिसे इलेक्ट्रानिक मीडिया के प्रारंभिक दौर में उसमें नौकरी मिली, जो पूरी दुनिया घूम चुका, जो देश के सभी क्षेत्र के तथाकथित बड़े लोगों के साथ उठ बैठ चुका, जिसने सौ फीसदी ईमानदारी से वो सब कुछ हासिल किया, जिसे हासिल करना लोगों का सपना होता है उसे अब और की दरकार ही नहीं, वो सिर्फ पैसे कमाने का काम नहीं करता तो उससे प्रश्न पूछा जाता है कि वो करता क्या है?
मुझे कुछ नहीं करने की (पैसे नहीं कमाने की) जवानी से आदत है। 
अभी जब किसी ने मुझसे पूछा कि संजय सिन्हा आप करते क्या हैं तो मैंने यही कहा था कि मैं कपड़े धोता हूं, बर्तन साफ करता हूं, घर, टॉयलेट की भी सफाई करता हूं तो पूछने वाला हैरान था। ये क्या काम हुआ भला? 
मैंने कहा कि मैं ऐसा ही हूं। कई साल पहले भी नौकरी छोड़ कर पत्नी के पीछे अमेरिका चला गया था और वहां वो कमाती थी, मैं हाउस हस्बेंड था। मेरा काम था उसके लिए नाश्ता बनाना, खाना बनाना। बेटे को तैयार करना। उसे स्कूल छोड़ना। घर साफ करना। वहां मेरी पड़ोसन थीं माधुरी दीक्षित। वो भी मेरी तरह अपने बेटों को तैयार करती थीं। उन्हें स्कूल छोड़ती थीं। घर की साफ-सफाई करती थीं। उनके पति डॉक्टरी करते थे। पैसे कमाते थे। 
फर्क क्या था? मेरी पत्नी कमाती थी। उनके पति कमाते थे। 
आदमी कमाता क्यों है? अपने और अपने परिवार के खर्च का निर्वाह करने के लिए। खर्च की ज़रूरत पूरी हो गई, कमाने की चाहत भी पूरी हो गई। यही मान लीजिए कि अब मेरी ज़रूरत ही नहीं कमाना। फिर क्यों कमाने में समय खर्च करूं? 
जीना भी तो इसी जीवन में है। जीने दीजिए। लिखने दीजिए। पढ़ने दीजिए। लोगों के लिए काम करने दीजिए। वो सब करने दीजिए जिनसे पैसे नहीं कमाए जाते हैं। 
या फिर पूछिए कि करते क्या हैं तो जो-जो मैं करता हूं, देश की तमाम गृहणियां करती हैं उन्हें काम की श्रेणी में गिनिए। 
पैसा कमाना काम नहीं होता है। वो ज़रूरत होती है। ज़रूरत पूरी काम खत्म। 
अब मैं जीता हूं। जीना ही मेरा काम है। कई लोग समय पर जीने का उपक्रम छोड़ कर जीने लगते हैं। कई लोग सारी ज़िंदगी कमाई की चक्की में पिसते रहते हैं। मत पूछिए कि संजय सिन्हा आप क्या करता हूं? सोचिए कि संजय सिन्हा क्या नहीं करते हैं? 
वो वही करते हैं जिसे कभी करने के आप सपने देखते हैं। काश! पूछने वाले की किस्मत भी उन्हें मेरी तरह ज़िंदगी जीने का मौका देती। यहां तो सब उलझे हैं। कमाने में। जीने की फुर्सत किसके पास है? सिवाय संजय सिन्हा के।


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