सुप्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
भाग्यवाद एवं ईश्वर की इच्छा से सब कुछ होता है- जैसी मान्यताएँ विपत्ति में असंतुलित न होने एवं संपत्ति में अहंकारी न होने के लिए एक मानसिक उपचार मात्र हैं। हर समय इन मान्यताओं का उपयोग अध्यात्म की आड़ में करने से तो व्यक्ति कायर, अकर्मण्य एवं निरुत्साही हो जाता है।
प्रतिभा किसी पर आसमान से नहीं बरसती, वह अंदर से ही जागती है। उसे जगाने के लिए केवल मनुष्य होना पर्याप्त है। वह अन्य कोई प्रतिबन्ध नहीं मानती। वह तमाम सवर्णों को छोड़कर रैदास और कबीर का वरण करती है, बलवानों, सुंदरों को छोड़कर गाँधी जैसे कमजोर शरीर और चाणक्य जैसे कुरूप को प्राप्त होती है। उसके अनुशासन में जो आ जाता है, वह बिना भेदभाव के उसका वरण कर लेती है।
अपव्ययी अपनी ही बुरी आदतों से अपनी संपत्ति गँवा बैठता है और फिर दर-दर का भिखारी बना ठोकरें खाता फिरता है। व्यसनी अपना सारा समय निरर्थक के शौक पूरे करने में बर्बाद करता रहता है। जिस बहुमूल्य समय में वह कुछ कहने लायक काम कर सकता था, वह तो व्यसन पूरे करने में ही चला जाता है।
सुरपति दास
इस्कॉन
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