सुप्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
दूसरों के साथ अनुचित व्यवहार करने से पूर्व विचार करो कि हमारा व्यवहार किसी को आहत करने वाला ना हो। अपने जीवन को वेदमय बनाकर जियो, भेदमय बनाकर नहीं।
दूसरों के साथ कभी भी वह व्यवहार मत करो जो तुम्हे स्वयं पसंद ना हो। आत्मरूप समझकर सबसे प्रेम करो और सबका सम्मान करना सीखो। अपनी दृष्टि को व्यापक बनाते हुए ये जानने का प्रयास करें कि आत्मा, परमात्मा का ही एक रूप है। सबके भीतर उसी एक परमात्म रूप का दर्शन करते हुए व्यवहार करना ही सर्वोत्तम व्यवहार है।
अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए बात-बात पर दूसरों की भावनाओं को आहत करना, दूसरों को प्रताड़ित करना यही तो भेद दृष्टि है एवं हरि व्यापक सर्वत्र समाना की भावना रखते हुए सबसे प्रेमपूर्ण व्यवहार करना ही वेद दृष्टि है।
सुरपति दास
इस्कॉन/भक्तिवेदांत हॉस्पिटल
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