सुप्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
हमारा बौद्धिक स्तर ही हमें किसी घटना से अधिक अथवा कम प्रभावित करता है। आंतरिक सूझ-बूझ के अभाव में एक धनवान व्यक्ति भी उतना ही दुःखी हो सकता है जितना एक निर्धन व्यक्ति और आंतरिक समझ की बदौलत एक निर्धन व्यक्ति भी उतना ही सुखी हो सकता है जितना एक धनवान।
वाह्य सुख साधनों से किसी की सफलता अथवा प्रसन्नता का मूल्यांकन करना संभव नहीं है। जीवन में प्रायः संग्रह करने वालों को रोते और बांटने वालों को हँसते देखा गया है। सुख और दुःख का मापक हमारी आंतरिक प्रसन्नता ही है। किस व्यक्ति ने कितना पाया यह नहीं अपितु कितना तृप्ति का अनुभव किया, यह महत्वपूर्ण है।
आज बहुत लोग ऐसे हैं जो धन के कारण नहीं मन के कारण परेशान हैं। सकारात्मक सोच के अभाव में जीवन बोझ बन जाता है। हरिनाम जप से, सत्संग से, भगवदाश्रय से, महापुरुषों की सन्निधि से ही जीवन में विवेकशीलता एवं आंतरिक समझ का उदय होता है।
सुरपति दास
इस्कॉन
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