Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सेवा करो, पर चिपको मत

 

सुप्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
संसार में प्रेम करनेवाले तो कई हैं, पर सहारा देनेवाला कोई नहीं है। कोई सच्‍चे हृदय से सहारा देना चाहता नहीं और देना चाहे तो भी दे सकता नहीं। इसलिये संसार का भरोसा मत करो, न आदमियों का, न जीवों का, न पदार्थों का, न परिस्थिति का।

सम्पूर्ण सृष्‍टि की रचना ही इस ढंग से हुई है कि अपने लिये कुछ (वस्तु और क्रिया) नहीं है, दूसरे के लिये ही है। संसार में अपने लिये रहना ही नहीं है। यही संसार में रहने की विद्या है। संसार वस्तुतः एक विद्यालय है, जहाँ हमें कामना, ममता, स्वार्थ आदि के त्याग पूर्वक दूसरों के हित के लिये कर्म करना सीखना है और उसके अनुसार कर्म करके अपना उद्धार करना है।

संसार के सभी सम्बन्धी एक-दूसरे की सेवा करने के लिये ही हैं। संसार में रबड़ की गेंद की तरह रहो, मिट्टी का लौंदा मत बनो। जो चिपकता है, वही फँसता है। गेंद किसी से नहीं चिपकती। सेवा सब की करो, पर कहीं चिपको मत।






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