विवाह सूत्र का अर्थ ही है कि मन वचन कर्म से जोड़े बंधन में बंध जाएं। फिर वो राम और मां जानकी हो जाते हैं जहां सिर्फ कर्तव्य याद रह जाता है और अधिकार भूल जाते हैं। तभी सम्बंध सात जन्मों का रिश्ता बन जाता है। जहां केवल अधिकार खोजा जाता है वहां संबंध निभना मुश्किल हो जाता है। परीक्षा की ढेरों शुभकामनाएं।
Sanjay Sinha उवाच
दो का एक हो जाना
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मैं किसी की शादी में शामिल होने से बचता था।
कारण?
दीदी की शादी का वो करुण दृश्य। दीदी विदाई की घड़ी बिलख-बिलख कर रो रही थी। सभी रो रहे थे। मां, पिताजी, मौसी, मौसा, बुआ, मामा और सभी को रोते देख कर संजय सिन्हा भी।
बस मेरे मन में विदाई की वो घड़ी कुछ इस कदर समा गई थी कि मैं बेटी की विदाई के नाम से ही घबरा जाता था।
दीदी की शादी के कुछ ही दृश्य मुझे याद हैं।
जब दीदी की शादी हो रही थी तब मां उसे समझा रही थी। मैं वहीं पलंग पर बैठा था। मां दीदी को शादी का मतलब समझा रही थी। मां कह रही थी कि शादी एक रस्म है। रस्म जिससे गुज़र कर दो लोग एक हो जाते हैं। मैं बहुत हैरान हो कर मां की बातें सुन रहा था। ऐसा कैसे होगा कि दो लोग एक हो जाएंगे।
मां दीदी को समझा रही थी कि विवाह जन्म जन्मांतर का संबंध होता है। विवाह एक संकल्प है, साथ हो जाने का।
दीदी नज़रें झुका कर मां की बातें सुन रही थी।
शादी का मुहुर्त निकला था सुबह सवा तीन बजे का।
मैंने पूरी कोशिश की थी कि मैं शादी में बैठूंगा। दीदी और जीजाजी को दो से एक होते देखूंगा। देखूंगा कि कैसे पंडित जी मंत्र पढ़ेंगे और दो लोग एक हो जाएंगे।
मां दीदी को बता रही थी कि विवाह में वर-वधु सात फेरों के साथ सात वचन लेते हैं। मैं समझ रहा था कि दीदी की शादी की रात जादू होने वाला है।
ऐन वक्त पर मैं सो गया था। जब मेरी नींद खुली, तब विदाई हो रही थी। पूरा घर जिस तरह बिलख रहा था, बस उसके बाद मैं किसी भी शादी में शरीक होते हुए घबराता था। मुझसे विदाई नहीं देखी जाती।
लेकिन कल मैं एक शादी में पूरी रात बैठा। मैंने पूरी शादी देखी।
संसार के सबसे अनमोल रिश्ते को मैंने कल बनते देखा। मेरी शादी हुई थी तब मैं छोटा ही था। बहुत सी बातें भूल गया था। लेकिन कल मैं मंत्र, अग्नि के फेरे और वचनों को ठीक से समझा।
सचमुच हमारे धर्म में दो को एक कर देने का विज्ञान मौजूद है। मैंने सातों वचनों को ध्यान से सुना।
बहुत से धर्म में विवाह एक संविदा है। पर हिंदू धर्म में ये दो का एक हो जाना है।
मैं हैरान था शादी के सातों वचनों को सुन कर, समझ कर। हमारे यहां ये इतना फूलप्रूफ सिस्टम कि अगर कोई सचमुच शादी के सातों वचनों का पालन करे तो कभी इस रिश्ते में चूक हो ही नहीं सकती है।
पंडित जी ने एक-एक वचन का मर्म समझा रहे थे।
सुख में, दुख में जीवन की हर परिस्थिति में दोनों साथ रहेंगे। किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में दोनों साथ शामिल होंगे। पति ऐसी जगहों पर नहीं जाएगा, जहां दुराचार होता हो। वो रमणीक बगीचे में भी विवाह के बाद अकेला नहीं जाएगा। दोनों कभी एक-दूसरे से कुछ नहीं छिपाएंगे।
और-और-और।
देखने को तो मैंने बहुत-सी शादियां देखी हैं। लेकिन कल मुझे लगा कि हम शादी के फंक्शन में जाते हैं, खा कर, लोगों से मिल कर, लिफ़ाफ़ा पकड़ा कर लौट आते हैं। कल लगा कि आदमी को मौका मिले तो मंडप में बैठ कर शादी देखनी चाहिए। अपनी शादी याद करनी चाहिए और याद करना चाहिए उन वचनों को, जिन्हें हम देकर आए होते हैं। मन ही मन गुनना चाहिए कि हम किसी एक वचन से भी गलती से ही सही, हटे तो नहीं।
कल मैंने पूरी शादी देखी। बहुत अच्छा लगा। समय बदल गया है। अब बेटियां विदाई पर रोती नहीं। माता-पिता भी खुशी से बेटी को विदा करते हैं।
शादी के सातों वचन अनमोल होते हैं। इन्हीं सात वचनों में वो जादू है, जिनसे दो एक हो जाते हैं।
नोट- आज लॉ का पेपर है, इसलिए पोस्ट जल्दी।
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