सुप्रभात जी।
कहानी सुनी सुनाई।
जीवन में केवल चिंता करने मात्र से कठिनाइयाँ हल नहीं हो जाती हैं। चिन्ता हमारे चिंतन की क्षमता को अवरुद्ध कर देती है और यही अवरोध तो हमारे दुखों का मूल कारण है। वह एक बार नहीं आजीवन चिंता की अग्नि में जलता रहता है। चिंता करने मात्र से आने वाली समस्या का हल तो नहीं होता है लेकिन वर्तमान की शांति जरूर भंग हो जाती है।
चिंताग्रस्त मस्तिष्क गेंहूँ के उस दाने के समान होता है जो बाहर से साबुत दिखते हुए भी अंदर से खोखला हो जाता है। किसी भी समस्या के आ जाने पर उसके समाधान के लिए विवेकपूर्ण निर्णय ही चिन्तन है। चिन्तनशील व्यक्ति के लिए कोई ना कोई मार्ग अवश्य मिल ही जाता है।
जिसके पास विवेक है वह समस्या के आगे से हटता नहीं अपितु डटता है। जीवन में किसी भी समस्या का डटकर मुकाबला करना आसफलता प्राप्त कर लेना भी है। जीवन में विवेक की चाबी से समस्या के ताले अवश्य खुल जाते हैं।
सुरपति दास
इस्कॉन
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY