Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

एक दृष्टि:- डाँ0 विद्या रानी

 

एक दृष्टि:- डाँ0 विद्या रानी
(ग़ज़ल-संग्रह) विभागाध्यक्ष (हिन्दी)
सुधीर कुमार ‘प्रोग्रामर’ एस.एम.काॅलेज, भागलपुर
प्रकाषक - मीनाक्षी, दिल्ली
पृष्ठ - 112
मूल्य - 180

 

 



‘सुधीर कुमार प्रोग्रामर’ ‘अंगिका’ और ‘हिन्दी’ दोनों के श्रेष्ठ साहित्यकार हैं। उनकी अंगिका कविताएँ जितना प्रभाति करती हैं। उनकी हिन्दी गजलें भी उतना ही प्रभावित करती हैं। दुष्यंत कुमार ने हिन्दी गजल की जिस परम्परा का श्री गणेष कर लोकप्रियता की पराकाष्ठा पर पहुँचा दिया, सुधीर प्रोग्रामर उसी क्रम में आगे बढ़ते नजर आ रहें हैं। उनकी संवेदना अपने परिवेष के प्रति सजग है और उसे अपनी सर्जनात्मकता के बल पर अपनी रचनाओं में उकेरने में कोई कोर कसर नहीं रखते।

 


सर्वप्रथम तो ‘उधार की हँसी’ षीर्षक ही आज के समाज के खोखलेपन को व्यक्त करता है। हम आंतरिक प्रसन्नता, संतोष या सद्भाव के कारण नहीं हँसते, वरण चापलूसी करने के लिए दाँत निपोरते नजर आते हैं। जहाँ से दो पैसे की आस होती है हम वहीं के लोगों को खुष करते नजर आते हैं। हमारे पेट में कुछ और, और मंुँह पर कुछ और रहता है। प्रोग्रामर जी जानते हैं कि लोग मनमानी करेंगे, सही राह पर नहीं चलेंगे, किन्तु समाज को सही दिषा में ले जाना साहित्यकारों का काम है, इसीलिए वे लिखते हैं कि -

 


‘‘हम खड़े हैं मुहब्बत की चैपाल पे
रूख सुधरते-सुधरते सुधर जायेंगे।’’

 


भारत वर्ष के साथ-साथ विष्व के रूख को सुधारने की कोषिष में प्रोग्रामर जी सारी दुनिया की स्थिति पर दृष्टि डालते हैं। उनकी गजलें पाठको की आँखें खोलने में सफल हैंै।

 


राजनीति पर उन्होंने लिखा है - ‘‘कोन देगा उसे सजा साथी
जिसने लूटा फकत् मजा साथी।’’
फिर - ‘‘कैसी अजीब दुनिया, कैसा है राज-काज
जो सैकड़ांे का कातिल, उसके ही सिर पे ताज।’’

 


राजनीति के अपराधीकरण पर ये दो गजलें बहुत खूब हैं। देश की स्वतंत्रता एवं विकास के लिए संयम ओर कर्मबल दोनों की आवष्यकता है, ये बात प्रोग्रामर जी बहुत ईमानदारी से समझते हैं।

 


समाज में समानता की बात को कवि ने नये ढंग से रखा है, नेतागण सुविधा संपन्न हैं एवं जनता अभाव से ग्रस्त है, ऐसा कबतक चलेगा। इसी पर प्रोग्रामर जी लिखते हैं -

 


‘‘हो बड़े छोटे मुसाफिर चल रहे जो साथ में
आप के जैसा सबांे की धाक होनी चाहिए।

 


जो जमींे पर खट रहा है, आप से क्यों कट रहा है
आप रहबर हैं अगर तो ताक होनी चाहिए।’’

 


कवि कहना चाह रहे है कि उच्च वर्ग में होकर आप अलग न हों जायें, आपको गरीब अमीर सब के साथ बराबर की दृष्टि रखनी चाहिए। क्योंकि जब तक आप संसद में नहीं जाते हैं तबतक आप भी समान्य ही रहतें हैं। कवि कहते हैं - ‘‘कल भटकते थे सहारा माँगने जो
अब सदन में बोलतें हैं बोल कुछ-कुछ।’’

 


स्वतंत्रता प्राप्ती के उपरान्त आजतक भारतवर्ष ने जितने भी विकास किये हैं वे सब के सब दूध की मलाई की तरह षहरी क्षेत्रों के अमीरों को सुविधा प्रदान करती जा रही है, हमारे गाँव, और गाँव के लोग सब प्रायः वैसे ही हैं जैसे थे, उनमें कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ है।

 


‘‘गमो के सिवा गाँव में आज क्या है?
गुदामों में सारे पड़े कुछ सड़े है।

 


आतंकवादियों पर कवि का ध्यान कुछ इस तरह जाता है कि वे दुनिया को अपनी वहषी हरकतों से परेषान कराते जा रहें हैं। चरित्रहीन नकली लोगों के अन्दर जो हबस है उसके कारण बहुत सी नारियाँ विवस हैं, दुखी हैं, लाज बचाने की चिन्ता है, पर मुँह पर ताजा लगा हुआ है, देश में नारी की दुर्दषा पर प्रोग्रामर जी लिखते हंै कि - ‘‘षिकायत भी करे कोई यहाँ अब कौन सुनने को
नजर में वेवफाई है ईमां भी स्याह काला है।’’
फिर - ‘‘ कठधरे में न्यास पैसा-पैरवी पर
कल गया था जेल परसों बेल देखो।’’
देश में समानता लाना कवि का उद्येष्य है, वे लिखते हैं -
‘‘ प्यासे खड़े हैं पास जल पिला सको पिला
हर झोपड़ी में दीप इक जला सको जला।’’
‘‘ स्वार्थ से हटकर दिला दे हक हमें जो
देश से परदेश पुख्ता नाम ढूढें़।’’

 


आतंकवादियों के खूनी आतंक से देश की साँसें विवस हंै, वे सिसक भी नहीं पाती हैं क्योकि जल्लादों के हाँथ में खून से सना खंजर देखकर वे मूक हो जाती हैं। कवि को सब के हिस्से की आजादी की चिन्ता है। सब आजादी पायें और खुषहाल रहें, इसी कामना से व्यथित कवि तरह-तरह से अपनी इच्छा व्यक्त करते है।

 


खेत खलिहानों में बाजार में विदेषियों की जो धाक् जमती जा रही है उस पर कवि की बड़ी पैनी दृष्टि है उनका विचार है कि ये एड्स, वर्ड फ्लू जैसे रोग विदेषों से आये हैं और वहीं से महँगा डिब्बा बंद खाना भी आया है जो हमारे देश को वर्वाद किये जा रहे हैं -

 


‘‘जानलेवा रोग आये पष्चिमी मुल्कों से ही
पर बताहा लोग कहते खून के कतरे में है।’’

 


देश की दुर्दषा, विदेषियों की घुसपैठ, आतंकवादियों का भय एवं अमीर-गरीब की खाई सब पर कवि ने अपनी दष्टि डाली है। हर गजल में एक चिन्ता, एक समस्या व्यक्त किया गया है फिर कवि का अपना मन ठानता है कि चाहे जो हो, हम देश के जीवन मार्ग को सुनहरा अवष्य बनायेंगे। कवि को अपना मार्ग स्पष्ट दीख रहा है। कवि को विष्वास है कि - ‘‘जिन्दगी के रूख सुधरते-सुधरते सुधर जायेंगे।’’

 


प्रोग्रामर जी तो उनके साथ जाने के लिए व्याकुल है जो तेज तूफान में देश की स्थिति को थामते रहे हैं।
अनिरूद्ध सिन्हा ने लिखा है कि ‘‘गजलकार सुधीर प्रोगामर खूबसूरत दुनिया के लिए प्रार्थना नहीं करते बल्कि खूबसूरत बनाने की कोषिष करते हैं।

 


सत्य ही ‘‘उधार की हँसी’’ की गजलें विकास और सुधार की धुन लेकर बढती हंै। गजलकार संदेश देते हैं एक दार्षनिक की तरह कि, दुनिया ऐसी है, देश में ऐसा वातावरन है, पर सजग लोगों को क्या करना चाहिए। कवि आषा का चिराग लेकर खड़ा है, समाज को, दुनिया को बदलने की इच्छा प्रबल है।

 


डाँ0 ब्रह्मदेव नारायण ने लिख है - ‘‘जीवन के कैनवास पर उभरते रंग और प्रतीकों के जरिये पाखंड को संकेतों के माध्यम से बयान करते संकलन की ग़ज़ल अपने समय और परिवेश में अभिव्यक्त हैं।’’ यानी विविध भावों की विविध प्रकार से अभिव्यक्ति कर ‘गजलकार’ सुधीर कुमार प्रोग्रामर एक सफल गजलकार के रूप में प्रतिष्ठित हो गये हैं। भाव एवं कला दोनों दृष्टियों से इनकी गजलें सफल एवं आकर्षक हंैं।

 


गजलों की कलात्मक सुदृढ़ता के संदर्भ में ‘हीरा प्रसाद हरेन्द्र’ ने लिखा है- ‘‘रदीफ़ो-काफ़िय़ा का घंूघट उतार फंेकने वाली चीज़ कुछ और भले हो ग़ज़ल नहीं हो सकती’’ का पालन प्रोग्रामर जी ने पूरे संकलन में तत्परता से किया है।’’
यानी गजल के छन्दों के जो नियम हैं उनका पालन गजलकार ने ईमानदारी से किया है, उसमें कोई गडबड़ी नहीं है। ओज ढेरों लोग छन्दों की बारीकी पर घ्यान न देकर मनमाने ढंग से कुछ लिखते हैं और आरोह-अवरोह से पूरा करने की कोषिष करते हैं किन्तु ‘‘उधार की हँसी’’ का गजलकार का गजल के रदीफोकाफिया पर भी अधिकार है यह एक बड़ी बात है।
प्रोग्रामर जी अंगिका और हिन्दी, जिसमें भी अपनी कलम जब चलाते हैं तो पूणर््ाता के साथ ही चलाते हैं। एक विज्ञान के छात्र होकर साहित्य में इतना काम करना और पूर्णता से करना, प्रोग्रामर जी के बहुमुखी प्रतिभा को दर्षाता है। ये साहित्यकार कवि गजलकार एवं गीतकार भी हैं। कवि सम्मलनों में इनकी उपस्थिति चार चाँद लगा देती हैं। मैं समझती हूँ कि भविष्य में प्रोग्रामर जी की और रचनाऐं हमें मिलेगी। ईष्वर से प्रार्थना है कि इनकी कलम ऐसे ही चलती रहे।

 

 


- विद्या रानी

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ