Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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इस तरह सकपकाती रही द्रौपदी

 

इस तरह सकपकाती रही द्रौपदी
लोर छुपके बहाती रही द्रौपदी।

 

रीत से मीत की सारिणी, देखकर
सेज खुद से सजाती रही द्रौपदी।

 

रूप सँवरा रहे, मस्त भँवरा रहे
नूर-ए-गंगा नहाती रही द्रौपदी।

 

हर करम को धरम मानकर आदतन
भेद सब से छुपाती रही द्रौपदी।

 

पूछ डाला किसी ने सजन का पता
आमरण लरखराती रही द्रौपदी।

 

 

 

सुधीर कुमार ‘प्रोग्रामर’

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