झूठ का परचम उड़ाना छोड़िए
बाज को गीता सुनाना छोड़िए।
फूल काँटो के हवाले छोड़कर
खुषबुओं को गुदगुदाना छोड़िए।
कोख में कुम्हला रही हैं बेटियँा
अब फरेबों का बहाना छोड़िए।
भारती की आरती सब दिन चले
कुछ मिनट में बुदबुदाना छोड़िए।
झोपड़ी की आग पहुँची पेट तक
स्वार्थ में दमकल जलाना छोड़िए।
अन्त का आरंभ मानों हो गया
सत्य को हँसकर रूलाना छोड़िए।
सुधीर कुमार ‘प्रोग्रामर’
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