सुधीर कुमार ‘प्रोग्रामर’
कमल में बंद भौरे का, सबेरा क्या बिगाड़ेगा
मिले गर साथ लहरों का, थपेरा क्या बिगाड़ेगा।
सलाखों में कभी सूरज की किरणें रह नहीं सकती
उजालों के तमाशे का, अँधेरा क्या बिगाड़ेगा।
अगर नागन की मर्जी से, बजाए बीन मस्ताना
जहर की फाँस को कोई, सपेरा क्या बिगाड़ेगा।
मुसीबत हम नहीं लेते, मुसीबत हम नहीं देते
सहोदर साथ हो मन से, फुफेरा क्या बिगाड़ेगा।
भरे नित पेट कितनों का, मछलियाँ जान दे-देकर
अमरता पा लिया जिसने, मछेरा क्या बिगाड़ेगा।
किसी साँचे में बर्तन को, बनाए या कोई तोड़े
मगर मिल्लत की धागों का, कसेरा क्या बिगाड़ेगा।
सुधीर कुमार सिंह‘
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