‘हिन्दुस्तान’ सबों का लेकिन, कितने हिन्दुस्तान के ?
लोकतंत्र के रखवाले भी, मौन हकीकत जान के
हिन्दू-मुस्लिम सिख-ईसाई, सुनते हैं कि भाई है
कौन शकूनी आपस में ही बढ़ा रहा अब खाई है
भारत को बाजार बनाने, की पक्की तैयारी है
दुश्मन से हम खाक लड़ैंगे, घर में मारा-मारी है
देश को चकमक-चकमक करने, ठग-लोभी को बुला रहे
सारे तुलसी को उखाड़ कर, बेली-जूही लगा रहै
छलिया की मुस्कान देखकर, हम गद्गद् हो जाते हैं
जैसे बकरे कत्ल से पहले, अद्भुत चारा खाते हैं
गाय, माय, और भाय की शक्ति, क्षीण बने, तैयारी है
जो सबसे जहरीला दु्श्मन, उनसे गाढ़ी यारी है
इन्टरनेटिंग, साइवर, केफे, सच पूछो जंजाल है
लींक फेल लेकर डूबेगा, ऐसा मजबूत जाल में।
लींक फेल है हार्ट फेल सा, जिसका कठिन ईलाज है
सोने की चिड़िया फँस जाए, बैठा गुमशुम बाज है
नित-नित कल से छोटी रोटी, और पासीने का पानी
बेबस पर सदियों से चलता, मक्कारो की मनमानी।
मौत सौत के ताण्डव में, पेरा जाता लाचार को
किसकी रोटी किसकी बेटी, पता नहीं सरकार को।
काट-काट कर बाग बगीचा, टीभी टाँवर लगा दिया
बहसी-फूहड़ नाच-गान से ,थके पथिक को जगा दिया।
साहब बैठे शीश महल में, आगे-पीछे चहल-पहल
काले करतूतों की पुड़िया, खुल जाये तो ध्वस्त महल।
अखबारो के चित्र देखकर, आँख शर्म से झुक जाती
इसी सोच में श्रेष्ठ कवि की जीवन लीला रूक जाती।
घात जनम लेता है हरदम, विश्वासों की डाली से
कहाँ दूर होता अँधियारा, रोज सुबह की लाली से।
देश का पैसा विदे्शों में, सोना चाँदी टोह रहा
और खेत का कमिया लथपथ, खाना-खरची जोह रहा।
काली पट्टी, न्याय बाँटते, हाँथ तराजू तोल यहाँ
थौक भाव में भी मिलता है, लेकिन बोली बोल यहाँ।
कौन सुनेगा, ये ‘प्रोग्रामर’, हालत चकनाचूर है
क्या होगा अन्जाम यहाँ तो, हर कानून में भूर है।
डूबो दिया कितने नावों को, और बने मल्लाह अभी
कौन बचाये बाँकी कस्ती, भगवन या अल्लाह अभी।
सुधीर कुमार प्रोग्रामर
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