उमड़ती नहर और कनकन महीना
हसीना नहाने का ढूंढ़े बहाना।
लजाई हवा तन-बदन में समाके
छहर-छहर जाए ये मौका सुहाना।
दयावान सूरज जो देखा तमाषा
हयादार किरणें पसीना-पसीना।
बहकते कदम की सुलगती कहानी
टटोले अँगूठी कुरेदे नगीना।
नहर बेखबर, बेखबर है जमाना
मिला षायरी को अनोखा तराना।
परेषान हम और हलकान दुनिया
मगर दायरे में दिवानी दिवाना।
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