Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दिनचर्या

 

दिन गुज़रा जब रो रो के
और आँखों से बरसात हुई
दिल और भी तब बेचैन हुआ
जब साँझ ढली और रात हुई

 

 

घडी की हर एक टिक टिक का
सम्बन्ध बना मेरी करवट से
तेरी याद में कितना तडपा हूँ
पूछो चादर की सलवट से

 

 

छिपते ही आखिरी तारे के
मेरी आँख की नदिया फूट पड़ी
सूरज की पहली किरन के संग
तेरी यादें मुझ पर टूट पड़ी

 

 

दिन गुज़रा जब रो रो के
और आँखों से बरसात हुई

 

 

सुधीर मौर्या 'सुधीर'

 

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