फूल पाने की कोशिश में कांटे चुभे
इश्क में मुझको हासिल हुये रतजगे
प्यार कैसा था , कैसी थी वो दोस्ती
ज़ख़्म ही ज़ख़्म दिल पर हज़ारों लगे
उसकी दुनिया बसी,ख्वाब बिखरे मेरे
हाथ देखे जब उसके हिना से सजे
जीत ये तीरगी की नहीं दोस्तो
क्योंकि मेरे दिये तो हवा से बुझे
मुझको दुश्मन की कोई ज़रूरत नहीं
आस्तीनों में पलते रहे कुछ सगे
आखिरश बन्द की मैनें उसकी किताब
उसमे जब मिल गये ख़त मुझे गैर के
सुधीर मौर्या "सुधीर'
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