Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हाँ में नहीं जनता उसे

 

हाँ
में नहीं जनता उसे
कभी मिला भी नहीं
पर उसकी सूरत
न जाने क्यों
तुमसे मिलती है।

 

ओ ! गंगा के किनारे
मेरे नाम का
घर बनाने वाली लड़की
आ कभी
लहरों पे आके देख
मेने कश्ती पे
तुम्हारे दुपट्टे का
बादबान बांधा है।

 

तूं एक लड़की का
जिस्म नहीं मेरे लिए
जिसमे, में डूबू या उतराऊं
तूं मेरा ही बदन है
क्योंकि बसाया है
मेने तुझे
अपने रूह की
अन्नंत गहराइयों में।

 

हाँ मे
जनता नहीं तुझे,
हाँ
में जनता हूं
ऐ लड़की !
तेरी आँखों में
मेरी चाहत का
समुन्दर बसा है।

 


-- सुधीर मौर्य

 

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