इश्क के थाल में
चाँद सज़ा कर
बाज़ार में बेच दिया
कल उसने...
सपनो का एक टुकड़ा था
जिस संग ज़ीस्त बितानी थी
तोड़ के उस सपने को
नैनं कर दिए सजल उसने...
रक्स उस दोशीजा का
मैंने रात चांदनी देखा था
पायल की झंकार पर
गाई मेरी ग़ज़ल उसने...
न रक्स रहा न ग़ज़ल रही
हाय जफा ही काम आई
भूल के प्यार गरीबों का
अपनाया महल उसने...
नज़्म संग्रह 'हो न हो' से - सुधीर मौर्य
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