Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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इश्क के थाल में

 

 

ishk ke thaal

 

इश्क के थाल में
चाँद सज़ा कर
बाज़ार में बेच दिया
कल उसने...

 

सपनो का एक टुकड़ा था
जिस संग ज़ीस्त बितानी थी
तोड़ के उस सपने को
नैनं कर दिए सजल उसने...

 

रक्स उस दोशीजा का
मैंने रात चांदनी देखा था
पायल की झंकार पर
गाई मेरी ग़ज़ल उसने...

 

न रक्स रहा न ग़ज़ल रही
हाय जफा ही काम आई
भूल के प्यार गरीबों का
अपनाया महल उसने...

 


नज़्म संग्रह 'हो न हो' से - सुधीर मौर्य

 

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