Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जानती हो तुम?

 

 

जानती हो तुम? जब अपनी नर्म कोमल अंगुलियां /

अपने नमकीन होठो पर रखती हो /

तो /

मुझे ईर्ष्या होती है /

पर मै जान नहीं पाता /

ईर्ष्या किस्से करूँ /

तुम्हारे होठो से या तुम्हारी अँगुलियों से। /

प्रिये अब ये मत पूछना हमें तुम्हारे होठो का स्वाद कैसे मालुम /

जानती हो हर रात तुम खुद मेरे ख्वाबों मे /

मेरे होठों को /

तुम अपने होठों के लम्स से /

नमकीन करती हो।

/ और प्रिये /

तुम्हारे नारंगी दुपट्टे के /

अंदर से झांकते

/ सलोने नैन

/ मेरे मन पे

/ हिरन कि तरह कुलांचे भरते है /

अब तुम्ही कहो /

मै तुम्हे देखूं /

तुमसे बातें करूँ /

या तुम्हे चाहूं।

 

 

 

 

---सुधीर मौर्य

 

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