जानती हो तुम? जब अपनी नर्म कोमल अंगुलियां /
अपने नमकीन होठो पर रखती हो /
तो /
मुझे ईर्ष्या होती है /
पर मै जान नहीं पाता /
ईर्ष्या किस्से करूँ /
तुम्हारे होठो से या तुम्हारी अँगुलियों से। /
प्रिये अब ये मत पूछना हमें तुम्हारे होठो का स्वाद कैसे मालुम /
जानती हो हर रात तुम खुद मेरे ख्वाबों मे /
मेरे होठों को /
तुम अपने होठों के लम्स से /
नमकीन करती हो।
/ और प्रिये /
तुम्हारे नारंगी दुपट्टे के /
अंदर से झांकते
/ सलोने नैन
/ मेरे मन पे
/ हिरन कि तरह कुलांचे भरते है /
अब तुम्ही कहो /
मै तुम्हे देखूं /
तुमसे बातें करूँ /
या तुम्हे चाहूं।
---सुधीर मौर्य
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