Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

रकीब संग मुस्करा रहा था

 

 

वो दिल पे नश्तर चला रहा था
रकीब संग मुस्करा रहा था

 

गिरा का आँचल बदन से अपने
वो हमसे दमन बचा रहा था

 

पहन के जोड़ा सितारे वाला
अहद वफ़ा का भुला रहा था

 

जफा निभाता रहा जो हरदम
वफ़ा के किस्से सुना रहा था

 

जो कम हुई रौशनी शमा की
'सुधीर' के ख़त जला रहा था



सुधीर मौर्या 'सुधीर'

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ