Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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रिंकल का दर्द

 

ऐ विधाता !
ओ विधाता !

 

क्यूँ लिख दिए
इतने दुःख
भाग्य में मेरे ......
मेरी आंहे
मेरी चीखे
नहीं पहुंची क्या
कान में तेरे .....

 

कब ख़त्म होगी
रात गहरी
है कहाँ सवेरा .....
सूर्य भी अब
नहीं देखता
मलिन मुख मेरा

 

चाँद सी सूरत मेरी
चाँद को भाई नहीं
चांदनी में लगी आग
जो बुझी बुझाई नहीं ......

 

चांदनी की आंच ने
चेहरा मेरा
झुलसा दिया
सय्याद के जाल में
हवाओं ने उलझा दिया .......

 

माँ-बहन
भाई-पिता
सबसे अब
दूर हूँ
हैवानियत की
भेंट चढ़ गयी
कितनी मै
मजबूर हूँ ......

 

पर साँस तक
एक आस है
कोई होगा इस जगत में
मेरा वीर भाई भी
या कोई शहजादा होगा
जो लेता होगा
अंगडाई भी
जिनके कर्मो से होगी
फिर मेरी रिहाई भी ......

 

ऐ विधाता !
ओ विधाता !

 

 


Sudheer Maurya 'Sudheer'

 

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