Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

रूह और तलाश...

 

 

rooh aur talaash

 

नदी पे
तैरते अंगारे
उन अंगारों से निकलती
धुंए की स्याह लकीर
उन लकीरों में
दफन होते मेरे ख्वाब
उन दफन क्वाबो में
भटकती मेरी रूह...

 

 

तुम्ही को तलाश करती है
पर तुम खोये कहाँ थे...
तुम तो छोड़ गए थे मुझे
एक बेगाना समझ कर
किसी अपने के लिए...

 

 

कौन ढूंढेगा हल इस सवाल का...
क्यों एक गैर को
मेरी रूह तलाश करती है
सदी दर सदी...

 

 


Sudheer Maurya 'Sudheer'

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ