ये तेरा शहर
ये तेरा गाँव
मुबारक हो तुझे
मेरा क्या हे
में तो बस मेहमान हूँ
दो पल के लिए
महकता ही रहे
चहकता ही रहे
ये तेरा घर
ये आँगन तेरा
क्या हुआ
जोन न रहा कोई फूल
मेरी ग़ज़ल के लिए
तूं सवरती ही रहे
तूं निखरती ही रहे
अपने साजन के लिए
भूल जा दिल से मुझे
तूं अपने कल के लिए
'सुधीर' के दामन में
ड़ाल दो
सब कांटे अपने
हर फूल हर सितारा
रख ले तूं
अपने आचल के लिए.
'लम्स' से
सुधीर मौर्या "सुधीर'
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY