Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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वो हे वेवफा पर

 

किया बेवफा जो उसको रक़म हे
मेरे हाथ करता फिर वो कलम हे

किया मुझको रुसवा महफ़िल में एसे
वो हे बेवफा पर मेरा सनम हे

थकी आँख मेरी इंतज़ार में उसके
अटकती हे साँसे अब आखिरी दम हे
'
सुधीर' न करना अब उल्फत तुम उनसे
वो सितमकश हाय बड़ा बेरहम हे

मेरे काव्य संग्रह 'लम्स' से

 

सुधीर मौर्या "सुधीर'

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