दुनिया का सायद ही कोई ऐसामानव धरा पर हो जिसे ज्ञान के प्राप्ति की जिज्ञासा न हो | अनादिकाल से ही व्यक्ति स्वं से श्रेष्ठ, जानकार ,मान्यव्यक्तियों के प्रति आस्था विश्वास श्रद्धा का भाव रखता रहा है | किसी भी कार्य में समस्या ,कठिनाई अथवा जानकारियाँ ज्ञात करने हेतु मनुष्य मन में जिज्ञासा उत्पन्न होना स्वाभाविक क्रिया है | समस्या के समाधान हेतु मानी, जानकार व्यक्तियों से परामर्श करता है |
आचार्य द्विवेदी जी में वरिष्ठों को जान्ने समझने समस्या का सामना करने की क्षमता विद्यमान थी वे अध्ययन मनन चिन्तनशील व्यक्तियों में से व्यक्ति रहे हैं |
आचार्य महावीर प्रसाद जी विविध साहित्यिक धाराओं से परिचित थे | हिंदी साहित्य के उन्नति के निमित्त उन्होंने मौलिक साहित्य का निर्माण किया द्विवेदी जी ने भारतेंदु युग में हो रही साहित्यिक आलोचना पद्धति , साहित्य की पुस्तक की आलोचना गुण दोष विवेचन के रूप में होती थी से इतर उनका प्रभाव कवि कलाकार लेखकों और पाठकों तक सीमित न रहकर उन्होंने साहित्य निर्देशन की दिशा से साहित्य निर्माण का कार्य किया |
द्विवेदी जी 'सरस्वती ' के सम्पादक थे | सरस्वती ने हिंदी साहित्यकारों को लेखन में सम्मान देने का कार्य किया |
हिंदी के रचनाकारों को सरस्वती द्वारा विविध विभिन्न अंचलों के साहित्यकारों की हिंदी में लिखने की प्रेरणा प्रदान की और हिंदी को समृद्ध बनाने में योगदान किया | उनदिनों हिंदी से अलग अग्रेजी ,संस्कृत और भारतीय बोलियों के अनेक विद्द्वान देश में थे जो अपने को हिंदी में लिखने से समर्थ नही बताते थे | उन विद्वानों को पत्रों के माध्यम से अथवा स्वं मिलकर हिंदी में लिखने के लिए आचार्य जी प्रेरित करते और उन विद्वानों मिले लेखों ,कविताओं को परिमार्जित करते तथा 'सरस्वती 'में प्रकाशित करते थे |
तत्कालीन समाज पर व्यंग चित्र का भी विशेष प्रभाव डाला व्यंग चित्रों से पाठको का मनोरंजन होता और वास्तविक रूप सामने रखने वाले चित्र, हिंदी साहित्य की परिस्थिति का वास्तविक रूप सामने रखने वाले थे जिसे लोग पसंद करते थे |
द्विवेदी जी नवम्बर १९०२ इ ० में 'हिंदी उर्दू 'शीर्षक चित्र द्वारा तत्कालीन हिंदी उर्दू झगडे की और सचेत करता है जिसे वे संबाद के रूप में प्रस्तुत किये और बताया ,दोनों लिखित लेखन का अंतर !
उनहोंने लेखन का अंतर कुछ इस प्रकार बताने का प्रयत्न किया -
'उर्दू' अरी क्यों री चुड़ैल ! तू मर कर भी नहीं मरती ?
और 'हिंदी बेटी ! तू जुग जुग जी ,मुझे क्यों मार डाले ? मैंने तेरा क्या बिगाड़ा है ?
'उर्दू' - तेरे आछ्ते मुझे राजगद्दी तो नही मिलती !
'हिंदी'-ठीक है बेटी !कलयुग न है मुझे इसी दिन के लिये बड़े साध से जन्माया था | अच्छा तेरे जी में आवे सो कह पर मेरी तो माता की आत्मा ठहरी ,मैं तो आसीस ही दूगी |
द्विवेदी युग के लेखकों में अधिकाँश लेखक सम्पादन करते थे अर्थात वे सम्पादक थे |जिसे जाशी नागरी प्रचारिणी सभा की फाइलों पत्रिकाओं में संरक्षित किया गया है देखा जा सकता है | जैसे श्यामसुंदर दास ,राजाकृष्ण दास (नागरी पत्रिका व सरस्वती ) भीम सेन शर्मा (ब्राह्मण सर्वस्व ) कृष्णकान्त मालवीय (मर्यादा ) रामचन्द्र शुक्ल ,गौरीशंकर हीराचंद ओझा (नागरी पत्रिका ) लाला भगवानदीन (लक्ष्मी ) रूपनारायण पांडये (नागरी प्रचारक ) बालकृष्ण भट्ट (हिंदी प्रदीप ) गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी (ब्रह्मचारी ) पद्म सिंह शर्मा (परोपकारी और भारतोदय ) संतराम बी.ए.(उषा और भारतीय ) लाला सीता राम बी. ए. (विज्ञान ) ज्वालादत्त शर्मा (प्रतिज्ञा) गोपाल गहमरी (समालोचना और जासूस )माधव प्रसाद मिश्र (सुदर्शन ) द्वारिकाप्रसाद चतुर्वेदी (यादवेंदु )यशोनन्द्न आखरी (देवनागर वत्सर ) संपूर्णानंद (मर्यादा ) किशोरीलाल गोस्वामी (वैष्णव सर्वस्व )छविनाथ (साहिय ) मुकुन्दी लाल श्रीवास्तव (स्वार्थ ) शिवपूजन सहाय (आदर्श )
आदि लेखक उन दिनों सम्पादक थे |
आलोचना में तुलनात्मक पद्धति महावीर प्रसाद द्विवेदी तथा पद्म सिंह शर्मा ने चलाई | ' साहित्यालोचना की संमिश्रनात्मक समन्वय की पद्धति आगे चलकर संकलात्मक नहीं रही अपितु विवेचात्मक और निर्णयात्मक हो गई |
.द्विवेदी जी बहुयामी व्यक्तित्व के धनी साहित्यकार थे उन्हें प्रतिभाशाली महान सर्जक साहित्यकार के रूप में जाना जाता है | द्विवेदी ने १९०० से १९२० इ .तक साहित्य पर अपने विशिष्ठ व्यक्तित्व व कृतित्व की ऐसी छाप छोडी कि उनकी लेखनी को स्वर्ण अक्षरों में .द्विवेदी युग के रूप में कहा जाने लगा | उन्होंने ललित साहित्यकारों को खूब प्रोत्साहित किया जबकि वे उपन्यासकार , कहानीकार अथवा नाटककार खुद नहीं थे |
द्विवेदी जी ने चिंतकों ,हिंदी लेखको ,कवियों को लिखने के लिए प्रोत्साहित किया और स्यं गद्य लिखा ,अनुबाद किया छोटी-बड़ी गद्य पद्य रचनाएं भी प्रकाशित की |
प्रारम्भिक जीवन में लिखी कविताओं को तुकवन्दी का सामान्य प्रयास समझते और जानते थे कि इससे कवि की प्रतिभा नहीं है |
महावीर प्रसाद द्विवेदी के अनुशासित निर्देशन में खड़ी बोली में काव्य लिखने की प्रक्रिया वेग के साथ संपन्न हुई थी यह उसकाल में इतना आवश्यक कार्य था कि सर्जनशील साहित्यिक दृष्टि से गौण महत्व का होने पर भी सर्व सम्मति से उन्हें युग निर्माण केव निर्मातक स्वीकार किया गया |
द्विवेदी युग में भी दो धाराओं के कवि थे १-द्विवेदी मंडल के कवि और २ दुसरेद्विवेदी मंडल के बाहर के कवि!
द्विवेदी मंडल के कवियो में मैथलीशरण गुप्त ,हरिऔध ,सियाराम शरण गुप्त ,रामचरित उपाध्याय आदि |
द्विवेदी मंडल से बाहर के कवियों में श्रीधर पाठक ,मुकुटधर पाण्डेय ,लोचन प्रसाद पाण्डेय ,रायदेवी प्रसाद पूर्ण ,रामनरेश त्रिपाठी आदि प्रमुख रूप से थे |
इन कवियों रचनाओं में प्रकृति का पर्यवेक्षण ,उनकी स्वच्छंद भंगिमाओं का चित्रण देश भक्ति ,कथागीत का प्रयोग काव्यभाषा के रूप में खड़ी बोली की स्वीकृति आदि |
नोट - (सरस्वती नवम्बर १९०२ पृष्ठ ३५९,हिंदी साहित्य का वृहद इतिहास सोलह्ह्वान भाग ,हिंदी काव्य EHW-०२ इ .गा.रा. मुक्त.वि.वि.माँ.विद्यापीठ १६-३-२,शैक्षिक मूल्यांकन एवं क्रियात्मक अनुसंधान से साभार )
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Sukhmangal Singh
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