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Dr. Srimati Tara Singh
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अहमदाबाद - द्वारिका यात्रा

 

अहमदाबाद से द्वारिका की यात्रा अपने आप में विशेष महत्व की थी । एक महत्वपूर्ण प्रसंग के साथ-युधिष्ठिर राजसूय अर्थात् राज्याभिषेक का उत्सव करने को था ।उसने सब राजाओं को, और अपने हस्तिनापुर के कुटुम्बियों को, भी निमंत्रण दिया गया । सबसे पूज्य स्थान गुजरात के यादओं के नायक कृष्ण को निमंत्रण दिया गया । चेदिवंश के शिशुपाल ने इसका बड़ा विरोध किया,और कृष्ण ने वहीं उसे मार डाला । महाभारत के प्राचीन भागों में कृष्ण केवल एक बड़ा नायक है, कोई देवता नहीं है,और उसकी कथा से विदित होता है कि ऐतिहासिक काव्य के काल में गुजरात को जमुना तटों से जाकर लोगों ने बसाया था ।
कौलाहल शान्त होने पर नवीन राजा पर पवित्र जल छिड़का गया और ब्राह्मण लोग दान से लदे हुए विदा किए गए ।(ऐतिहासिक काव्य कालपृ0104अ2)॥
मेगास्थिनीज का वर्णन पाण्डव लोगों के विषय में है जो कि दક્ષિणी भारत की छोर पर राज्य करते थे । इन पाण्डवों का एक अद्भुत इतिहास है ।
कृष्ण के साथ जो यादव लोग मथुरा को छोड़ कर सौराष्ट्र(गुजरात) द्वारिका में आबसे थे वे वहां बहुत काल तक नहीं रहे । उनमें परस्पर लड़ाई होने लगी और मर कट कर जो नबचे उन्होंने समुद्र के मार्ग से द्वारिका छोड़ दी । प्राचीनभारत की सभ्ता का इतिहास के अध्ययन से
निष्कर्ष मिलता है कि दार्शनिक काल तक सभी आर्य,अनार्य जातियाँ हिन्दू आर्यसभ्यता को ग्रहण कर कलेवर धारण कर लिया था । आर्यों की
श्रेष्ठ सभ्यता, धर्म और भाषा को स्वीकार किया । जब मेगास्थिनीज भारतवर्ष आया उस समय लंका में हिन्दुओं का राज्य था ।
लंका को मगध राज का राजकुमार जिसे उसके पिता तत्कालीन राजा ईसा के पहिले पांचवी शताब्दी में दुष्कर्मो के कारण निकाल दिए थे उसने लंका जीता था । इस टापू कोयूनानी लोग तपोबनी के नाम सेपुकारते थे जो कि पाली भाषा के तम्बपल्ली(तम्बपन्नी)और संस्कृत के ताम्रपर्णी से मिलता है ।मेगास्थिनीज़न कहता है कि वह टापू भारतवर्ष से एक नदी के द्वारा अलग था और उसमें सोना, बड़े-बड़े मोती होते थे वहाँ के हाथी भारतवर्ष से बड़े होते थे ।(वही पृ20/21)॥
मानव को कर्म धर्म आचरण और सभ्यता ही छोटा से बड़ाऔर बड़े से छोटा बना देता है । गीता नें हमें कर्म करने की जो सीख दी वह अपने आप में एक सम्पूर्ण ग्रंथ है उत्तम सीख का सरल साधन है ।
जय द्वारिका धीश,जय गोमती घाट:-"अयोध्या मथुरा माया, काशी कांची अवंतिका,
पुरी, द्वारवति,चैव सप्तधा मोક્ષदायिका: ॥"ब्रह्माजी के मानस पुत्रों सनकादि ૠषियों ने मोક્ષ पाने के लिए द्वारिका भूमि पर मोક્ષदाता भगवान विश्णु की हजारों वर्ष आराधना की थी । कठिन तपष्वी ૠषिओं को भगवान विष्णु के प्रागट्य दर्शन से पहिले समક્ષ समर्थ समुद्र से सुदर्शन चक्र प्रकट हुआ । द्वारिका में बहती गंगा गोमती के रूप में प्रसिद्ध हुई हैं।यहाँ गो का तात्पर्य पृथ्वी से और मती का अर्थ अवतरण है तथा स्वयं भगवान विष्णु(चक्र स्वरूप) प्रकट हुए । जो चक्र नारायण से जाने जाते हैं ।
यह तीर्थचक्रतीर्थ से प्रसिद्ध है । द्वारिका-द्वारऔर का के समन्वय से बना हुआ है। द्वार का तात्पर्य दरवाजा है वहीं का शब्द गूढार्थमें ब्रह्म है। माना जाता है ब्रह्म तक पहुचने का द्वार द्वारिका धाम है । रत्नाकर समुद्र और गोमती के संगम के कारण इस धरा को संगम नारायण के नाम से भी जाना जाता है । माना जाता है गोमती संगम स्नान मानव के कई जन्मों के पाप को नष्ट कर मुक्ति प्रदान करता है ।
तीन द्वारिका दर्शन स्थल:- द्वारिका रेलवे स्टेशन से पैदल अथवा टैपू से द्वारावती(द्वारिका)नगरी में आप पधार सकते हैं। आध्यात्म और शास्त्र की मानें तो पैदल यात्रा का विशेष महत्व होता है । वास्तव में द्वारिका तीन हैं ।जिनके नाम क्रमश: मूल द्वारिका, द्वारावती(द्वारिका)और बेट द्वारिका हैं । यहाँ आप नें द्वारिका नगरी गोमती घाट पर स्थित का अवलोकन किया । जो गोमती के तट पर है ।
यहाँ लगभग आज बारह पक्के घाट निर्मित हैं । गोमती स्नान के उपरांत 56 सीढियाँ चढकर द्वारिकाधीश रणछोड़ मंदिर में जा सकते हैं ।
यह विश्व प्रसिद्ध द्वारिकाधीश का प्राचीन मंदिर है ।
सोलह कलाओं से सुसज्जितद्वारिकाधीश के दर्शन हेतु जो मनुष्य द्वारिका जाने का मात्र विचार ही करता है उस समय से ही उसके पितृ अपनी मुक्ति पाने हेतु आनंदित हो जाते हैं । मनुष्य भगवान के तीर्थ स्थान जाने हेतु जितनें कदम चलता है हर कदम पर अश्वमेध यજ્ઞ का फल प्राप्त होता है ।जो अन्य लोगों को जाने हेतु प्रेरणा देते है/तैयार करते हैं वह मृतुपरान्त विष्णु लोक में जाते हैं ।यह कथानुसार ૠषिओं को दैत्यराज प्रह्लाद जी ने बताया था ।
द्वारिकाधीश का दर्शन के उपरांतहमारे तीन साथियों नें बेट द्वारिका के दर्शन का भी लाभ प्राप्त किया जो क्रमस:सर्वश्री वी आर पाल,सुरेश सिंहऔर केशव यादव जी रहे। हम सुखमंगल सिंह,जयप्रकाश लाल और कृष्ण कुमार द्वारिका धाम से अहमदाबाद के लिए प्रस्थान कर गए । द्वारिकाधाम के आस-पास कालोनियाँ पत्थरों से निर्मित थीं ।उसके ऊपर से सीमेंट का लेप कर सुन्दर,खूबसूरत बनाया गया था । स्टेशन से कुछ ही दूरी पर शंकराचार्य का आश्रम है । द्वारिका से 17 कि0 मी0 पर भारत के मुख्यद्वादश ज्योतिर्लिंगों मेंजाना जाने वाला ज्योतिर्लिंग नागेश्वर ज्योतिर्लिंग यहाँ पर स्थित है । पुरातन काल में यहाँ दारुकावन हुआ करता था ।
द्वारिका से थोड़ा पहले नमक की खेती होती है जिसपर सफेद बगुले मडराते दिखते रहते थे । सौर्य ऊर्जा का प्रयाप्त व्यवस्था किया गया है। यहाँ की गायैं मोटी सींग वाली छुट्टा चरने की आदत में सुमार दिखीं । नागफनी , बबूल की झाड़ काफी रही। जंगल जो बबूल के दिखे उसमें भी सड़कें और विद्दुत व्यवस्था उत्तम थी । यदा कदा मंदिर बीच-बीच में दिख जाते थे । रेलवे लाइन के समानान्तर में समतल सड़क व्यवस्था, अच्छी सड़क निर्माण है ।
मेनवाजार-लहलहाते सफेद फूलोंसे लदी कपास की खेती,गेहूँ,चना की खेती मन कोमोह ही रही थी कि एक काला कुत्ता दुम हिलाते हुए बढ रहा था केले की तरफ,पास में गायों बैलों का समूह भी था । सींग मोटी रंग सफेद औरभूरे रंग में ।
ट्रेन में सफर कर रहे जगदीश भाई जो हाल में ही म0 प्र0पुलिस में ट्रेनिंग कर रहे थे मुलाकात के दरमान वार्ता में चर्चा के दौरान कहाकि इस ક્ષેत्र में गेहूँ,चना ,अरण्ड,कपास,जीरा,गन्ना की उत्तम खेती होती है । हमने जब उनसे प्रस्न किया कि आप के यहाँ नौकरी के नाम पर सुविधा शुल्क भी लिया जाता है ?जगदीश भाई ने बताया कि बहुत नामिनल सुनने में आता तो है परन्तु हमसे तो किसी ने ऐसी कोई बात नहीं की थी ।
यहीं पास में बैठे अजीत भाई जो ई0 की पढाई कर रहे हैं,द्सेवारिका ક્ષેत्र के भी हैं, जब पूछा कि आप के यहाँ चोरी, छिनैती, लूट हत्या का ,का होता है। अजीत भाई की बात सुन हम सब दंग रह गए कि यहाँ कोई सुरा(दारू) पी कर सड़क पर नही चलता है अतएव यहाँ इस प्रकार की घटना होना नामुमकिन है । सभी को रोजगार है । खेती उन्नतशील है । बाहरी प्रदेशों से आनेवालै भी नियम संयम से यहाँ रहते हैं ।
मोवन,खम्भालिया व कजूरदा-मोवन के पास यात्रिओं को यात्रा के दौरा न एक मात्र एक खपरैल घर यहाँ दिखा थाजो टालियों से छाया गया था उसकी भी दीवाल ईंटो से ही निर्मित थी । खेतो के लहलहाते दृष्य मन को भाए जारहे थे । यहीं एक मात्र सूखी नहर दख रही थी । कुछ कमरों (लगभग दस) कमरों का पक्का मकान भी पास में पुराना था जसके दरवाजे खिड़कियाँ सभी नदारत थे उसे देखने से प्रतीत होता था । मानों कभी पुराना पंचायत घर रहा होगा । खम्भालिया वाजार के सक्ल में फ्लैटों से निर्मित सुन्दर कालोनी है।स्टेशन के समानान्तर में सड़क है ।स्टेशन के वाद एक मंदिर दिखा जिसका रंगरोदन नहीं हुआ था । आज के नये दौर में भी दो बैलो से जुड़ी बैल गाड़ी देख मेरा मन आश्चर्य चकित हो नोहारता रहा कारण मरे बचपन के दिनों का याद दिलाने लगा था। मुझे पूरा पूरा याद आने लगा था कि इसी प्रकार मेरे बड़ेभाईश्रीराजमंगल सिंह के शादी में जो उ0 प्र0 के अहिरौला जिले के बनरहिया नामक ग्राम में श्री रामप्रताप सिंह की सगी बहन से शादी में बैल गाड़ी और आठ कहारो की डोली गयी थी ।
कजूरदा में भी कुछ नारियल के पेड़ दिख रहे थे । यहाँ पानी को इकट्ठाकिया जारहा था एक20गुणे20 के पक्के चौकोर नुमाँ सीमेंट से बने हौज में जो समर सेबुल से भरा जा रहा था । विद्दुत वव्वस्था परयाप्त थी ।
अहमदावाद में साथियों ने टैम्पू चालक मुस्लिम युवक से जब पूछा कि यहाँ की व्वस्था कैसी है जो हमें भा रही है तो उस होनहार चालक नें कहा कि यहाँ सुशासन है। हमारा मुख्यमंत्री हर एक कार्य अच्छा कर रहा है। कुडाल ने पुन: गुजरात के अहमदाबाद आने का आग्रह किया कितना प्रेम था उस युवक में ।
अहमदाबाद रेलवे स्टेशन से पाँच रूपया देकर लाल दरवाजा गये । यहाँ से पैदल ही सड़क मार्होग से रतन पुरा गए वहाँ कपड़े का सुन्तेदर मार्केट था जिसे देखकर मन मे जिજ્ઞાसा जगी और कपड़े की दूका में जा पहुचा । हमारे साथ गये कृष्ण कुमार ने तो काफी कपड़े लिए सस्ते अच्छे कपड़े देख हमने भी दो पैट दो सर्ट के कपड़े लिए। खुदरा मार्केट में भी हमारे बनाेर से काफी सस्ते अच्छे कपड़े मिल गये थे।
हम दोनो पैदल ही वहाँ से पाँच कुआँ जहाँ तीन गेट था सायकिल मार्केट से होते हुए रेलवे स्टेशन आ पहुचे ।
यात्रा बहुत अच्छी और महत्व पूर्ण लगी ।
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Sukhmangal Singh

 

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