आर्थिक उदारीकरण के वर्तमान दौर में बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने अपना जलवा फैलाना शुरूकर दिए हैं चाइना का ही ले तो सारे जहां में अपने छोटे बड़े सामानों को एशिया के बाजारों में उतार के देशों के मुनाफे का लाभ अपनी तरफ खींचता जा रहा है | बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भविष्य में छोटे उद्योगों को पीछे धकेलती हुई
आगे निकल कर क्षेत्रीय जनता को मजदूरी करने को विवश कर सकती हैं |
नियंत्रण में ढील देना आर्थिक उदारीकरण की परिभाषा में आता है जिससे किसी भी देश के आर्थिक विकास में वाधक नीतियां नियम या प्रशासनिक नियंत्रण प्रक्रिया समाप्त किया जासके | वहुमुखी उन्नति हेतु व्यापार की शर्तों में ढील दिया जाता है |
माननीय नरसिंहा राव सरकार की नीति और मनमोहन की सन् १९९० के दशक की शुरुआत में मह्त्वपूर्ण
नीतिगत बदलाव लाया | यद्यपि भारत में आर्थिक उदारीकरण २४/०७/१९९१ के बाद सुरु किया गया| वहीं सन् १९९४ में नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का श्रीगणेश हुआ |
आर्थिक प्रतिबंधों की न्यूनता को उदारीकरण कहा जाता है | वर्त्तमान समय में भी उदारीकरण की नीति को जोरदार समर्थन मिल रहा है यही वजह है बहुराष्ट्रिय कम्पनियां भारत जैसे देशों पर हावी हो रही हैं |
उदारीकरण के पूर्व में भारत क्षेत्र में जो विदेशी कम्पनियां थीं उन्होंने साझेदारी हितों पर कुठाराघात नहीं किया हो ऐसा कहना थोड़ा कठिन लगता है | इस इस्थिति परिस्थिति को भांपकर भारतीय उद्योगपतियों में आशंका फैलने लगी | यद्यपि विकासात्मक और आर्थिक दृष्टिकोण से उदारीकरण की नीति लाभदायक कही जा सकती है |
हमें आज पश्चिमीकरण के प्रभाव में आकर संस्कृति -सभ्यता का ह्रास होने से बचाना होगा अन्यथा भारतीय लोकतंत्र को भी खतरे से बचपना नामुमकिन सावित हो सकता है |--
Sukhmangal Singh
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY