वह आक्रमणकारियों का दौर था
आक्रमण का लोगों में तब खौफ था|
उस वक्त भी दौलत लूटते रहे लोग
आज भी लुट रहे कैसा बना संयोग ?
दौलत वे ले जाने के लिए आने लगे थे
निज हित में सभी राजा घबराने लगे थे|
और खिलजी दिल्ली में बैठ सिंहासन से
षड्यंत्र रचकर मन से मुस्कराने लगा था |
राजाओं में एकता की कमी से हुए गुलाम
आज अपनों से हो रहे है कितना बदनाम |
वीरांगनाएं जब उठ खड़ी होंगी अन्दरर्न से
व्यभिचारी -दुराचारी -भ्रष्टाचारी कन्दरा में ||
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Sukhmangal Singh
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