अपनी काशी "
>> काशी प्राचीन नगरी है | इसका उल्लेख वेदों,ब्राह्मण ग्रन्थों तथा
>> उपनिषदों में पाया जाता है | इसका सबसे प्राचीन नाम काशी ही है | यहाँ
>> भगवान की प्रथम ज्योति प्रकाशमान हुई ,इसी से इसका नाम काशी पड़ा |
>> काशी में हिन्दू विश्वविद्द्यालय की स्थापना के लिए १९१३इ० में नवम्बर के
>> अंत तक ८२ लाख रूपया अमीर-गरीब ,स्त्री-पुरुष,विद्यार्थी ,राजा-महाराजा
>> एवं जमींदारों ने दान दिया था | वर्तमान में यह विश्वविद्यालय एक अनूठापन
>> लिए ,विश्वभर के बच्चों को विभिन्न भाषा में शिक्षा प्रदान कर भारत को
>> गौरवान्वित कर रहा है | कहावत है-सुबहे बनारस ,शामे अवध |
>> तात्पर्य है कि काशी से ही प्राचीन संस्कृति उदय हुई | गमछा लपेटे ,
>> लंगोट बांधे ,अलमस्त सादगी से चले जा रहे गंगा स्नान करने,सादगी के साथ ,
>> वेसक पद्म्भूष्ण ,पद्म्विभूष्ण ,साहित्यरत्न ही क्यों न हों,यही नहीं
>> नजदीकी लोगों से प्यार में कहते -काबे!का करत हवे? इसी से स्पष्ट है
>> साम्यवाद काशी में आज भी कयम है|गंगा-जमुनी तहजीब, जो प्राचीन वैदिक
>> काल से चली आ रही है,आज भी त्यौहारों पर प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होती है |
>> क्षेत्रे भोजन ,मठे निद्रा |
>> यानी कि बहुतायत मठ,मंदिर एवं धर्मशालाएं काशी में पहले से ही
>> स्थापित हैं,साथ ही माँ अन्नपूर्णा जी का मंदिर है जिसमें माँ पराल्प रूप से
>> आज भी काशी में वास करती हैं| अतएव कोई भी प्राणी भोजन और शयन
>> से यहाँ वंचित नहीं रहता |
>> प्राचीन काल से ही भाषाओं का अभ्युदय काशी में हुआ जैसे पाली
>> संस्कृत ,हिंदी आदि| काशी में वीरांगना लक्ष्मीबाई जन्मीं, पलीं ,पढ़ीं |
>> केदारघाट के पास आज भी उनका महल विदमान है | यह कोठी प्राचीनकाल
>> की अपने तरह की अनूठी कोठी है|
>> राँड, सांड ,सीढियां ,सन्यासी !
>> वैधव्य को प्राप्त नारियां यहाँ पूजन अर्चन के साथ - साथ
>> जीविकोपार्जन हेतु माला फूल इत्यादि बेचती हैं| सांड ! भगवान शंकर का नंदी
>> बैल होने से पूज्यनीय है | काशी की सीढियां अद्वितीय महिमा मंडित हैं | काशी
>> पाप- विनाशिनी है | जो देवगणों को भी दुर्लभ ,सतत गंगा संगता,संसार
>> पाशच्छेदिनी शिव-पार्वती से अविमुक्त ,त्रिभुवन से अतीत ,मोक्ष जननी ,
>> काशीपुरी को मुक्त पुरुषगण कभी परित्याग नहीं करते| पान, वह भी विशेष
>> प्रकार का , काशी में ही सुलभ होता है | साथ ही ' 'बहरी अलंग' का बाटी-चोखा,
>> गंगा स्नान पुन :११ प्रतिशत लोगों द्वारा भांग का सेवन भी अपने आप में
>> अनूठा है,
>> काशी में बहुत प्रचलित है | 'बहरी अलंग ' का चोखा बाटी वैदिक काल से
>> प्रचलन में है| पंचों से ज्ञात किया ,पता चला कि उसी का विकृत बीभत्स रूप
>> पिकनिक हो गया है जबकि यह प्राचीनकाल से ही संस्कृति, संस्कार के
>> अनुरूप यह प्रचलन में था | जहां तक सन्यासी की बात है,ऐसा है? यदि किसी
>> को सन्यासी बनना है तो वे काशी में ही आते है, आते और जाते रहेंगे |
>> काशी की प्रमुख समस्या जल (पीने का पानी ),सीवर की समस्या ,
>> सकरी सड़कें ,मांस,मछली की दुकानें, वाराणसी में दोनों कसाईंबाडा-
>> गोलगडा ,(कमल्गडहां ) अर्दली बाजार (कचहरी के पास ) जो हैं वे
>> जानवरों आदि के खून वरुणा ,गंगा में बेखटक बहाना आदि ,यही कारण है
>> कि आज तक गंगा जल की पवित्रता की छवि पर प्रश्नचिन्ह खडा टाक रहा है |
>> सड़कों के जाम होने से प्रतिदिन हजारों लीटर डीजल प्रट्रोल बेकार जल रहा है |
>> कालीन उद्योग ,साडी उद्योग तथा काले पंखे का उद्योग मृतप्राय होने के
>> कगार पर है ,यही वजह है बेरोजगारी भी प्रमुख समस्या काशी में अब हो चुकी
>> है | यद्यपि वर्तमान सरकार ने इसपर कदम बढाया है |
>> समस्याओं के निदान हेतु जनता को भी जागना होगा ,जगाना होगा |
>> कछुए की चाल चल रहे शासन प्रशासन को? तभी हम गर्व से कह सकेंगे -
>> काशी बस्यो गंगा तट वासी,जैन ,बौद्ध, यक्ष, नाग अविनाशी |
>> ब्रह्म्वर्धन मुक्तिदायिनी काशी ,कल्पवृक्ष करुण की राशि |
>> तभी सुरक्षित और सुसज्जित काशी रह सकेगी |
>> शासन को युद्धय स्रतर पर कार्य करना होगा | प्रति एक-एक किलोमीटर के अंतराल
>> पर
>> नलकूप लगाकर ,साथ ही ओवरहेड टैंक बनवाना होगा | पिछली सरकार में करोड़ों
>> रूपये
>> में
>> बने ओवरहेड टैंक जो चू रहे हैं और जल विहीन हैं, उन्हें ठीक कराना व उनकी
>> जांच
>> करानी होगी | हर घर से वर्षा का पानी जमीन में समाहित कराना होगा |
>> मांस-मछली
>> की क्रय-विक्रय की दुकानों को शहर क्षेत्र से बाहरी अलंग में स्थापित कराना
>> होगा | अतिक्रमण हटाने के साथ-साथ ही मापदण्डसे अधिक तिपहिया चारपहिये वाहनॉ
>> को शहरी प्रवेश से वर्जित करना होगा | काशी सुन्दरिकरण योजनाओं सहित शहर में
>> ओवर वृज का निर्माण आवश्यक रूप से करना होगा |सड़कों के चौड़ी करण सहित भारत
>> सरकार एवं राज्य सरकार की बनायी गयी पूर्व योजनाओं को सुधार सहित लागू करना
>> होगा | नयी योजनाओं को जल्दी कार्य रूप में लाना होगा |
>> काशी की बेहतरी के लिए यद्यपि प्राचीनकाल से ही प्रयास जारी है | प्रबुद्ध
>> वर्ग भारत सहित अंतर्राष्ट्रीय स्टार पर अपनी पहचान बनाकर काशी को गौरव
>> प्रदान
>> किया है | सद्भावना गोष्ठियां ,पर्यावरण बचाओ अभियान,नशा उन्मूलन
>> प्रतियोगिताएं ,जनजागरण अभियान,शिक्षा ,स्वास्थय,उच्चशिक्षा हेतु प्रोत्साहन
>> साहित्यिक - सामाजिक गोष्ठियां आदि के आयोजन सहित कवि , लेखक ,साहित्यकार
>> ,संगीतकार, पत्रकार ,प्रयास रत हैं | गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा था-
>> का भाषा का संस्कृति ,प्रेम चाहिए सांच |
>> काम तो आवै काकरी, का ली करै कामांच ||
>> खड़ी बोली में सर्वप्रथम काव्य रचना का श्रेय यदि किसी नगर के कवि को प्राप्त
>> है तो वह काशी के कबीरदास जी को | कबीर की वाणी से लोग उद्विग्न हुए
>> ,क्षुब्ध
>> हुए | पर यह विचार न कर पाये कि जीवन में हमारा कर्तव्य क्या है | बाद में
>> चलकर भारतेंदु बाबू ने खड़ी बोली को परिमार्जित रूप में पेश किया |
>> काशी की महिलाएं भी शिक्षा क्षेत्र में पीछे नहीं थीं | महिला संसार आज अपने
>> पुराने स्थानों से कई गुना आगे बढ़ चुकी हैं और उनमें शिक्षा की कमी उस हद तक
>> नहीं रह गयी है | जैसे पहले थी | लाहौरी टोला में हिन्दुओं नें जिस कन्या
>> पाठशाला को सबसे पहले खोला ,वह कन्या पाठशाला आज भी है जिसका श्रेयबब्बू
>> माधव
>> प्रसाद जी को जाता है | यद्यपि आज तो शहर-देहात में विभिन्न पाठशालाएं
>> स्थापित
>> हैं | एक सर्वोत्तम शुभ यह भी है कि
>> काशी में पांच विश्वविद्यालय विदमान हैं | काशी का कवि भी पीछे नहीं रहा है
>> कारण विश्व की बोली उसके/ उसकी कविता में है | उसमें एक अनूठा आकर्षण होता
>> है
>> और अनिर्वचनीय आनन्द | मूक मनुष्य जिस प्रकार मधुर-मधुर वचन सुनकर आह्लादित
>> हो
>> जाता है,इसी प्रकार कवि के प्रत्येक शब्दों और वाक्यों की गति पर समस्त
>> संसार
>> मस्ती से झूम उठता है | कवि जो नित्य देखता है उसे किसी न किसी रूप में
>> प्रदर्शित करना चाहता है |
>> वर्तमान में परिवर्तन की आधी ने लोगों को झकझोर कर रख दिया है | इतना
>> परिवर्तन
>> जरूर हुआ है कि स्वतंत्रता से पहले जो पत्रकारों ,साहित्यकारों के आदर्श थे
>> वह
>> आज देखने को नहीं मिलते | हमें पुन : उन आदर्शों पर चलना होगा , जैसा की
>> साहित्य में वर्णन मिलता है और सत्य भी है | साहित्यकार और पत्रकार दिनों ही
>> लेखक हैं,सर्जनाकार हैं | समाज और साहित्य में बदलाव के जिम्मेदार दोनों हैं
>> |
>> यह बात दीगर आज लोग अपनी जिम्मेदारी से कतराते दिखने लगे हैं | अपने में
>> बदलाव
>> करना ही होगा ,कारण स्पष्ट है कि साहित्यकार सैनिकोण से अधिक गंभीर और घातक
>> होता है ,वह महान वीर और अगाध गंभीर हो कलम से लड़ सकता है |
>> हमें कैसी काशी चाहिए ? सर्वधर्म समभाव की ! साहित्यिक और सांस्कृतिक काशी!
>> सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय की काशी ! जहां में सन्देश बुलंद हो,प्रसारित
>> करता
>> है |--
>>
>> --
>> Sukhmangal Singh
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