Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

भारत में हिंदी सप्ताह

 

भारत में हिंदी सप्ताह सभी सरकारी /गैरसरकारी कार्यालयों में संघ की राजभाषा नीति के अधिनियम ,१९६३ के अधीन मनाया जाता है | वाराणसी काशी उत्तर प्रदेश जिसे हिंदी भाषी प्रदेश कहा जाता है , से मुझे मुख्य बक्ता के रूप में और अजीत श्रीवास्तव को काव्य पाठ हेतु आमंत्रित किया गया | हम आभारी हैं अहिन्दी भाषी प्रदेश उडीसा के क्षेत्र जिला ,ढेकानाल का | हम आभारी है प्रधान महाप्रबंधक श्रीमान हरिश्चंद महान्ति जी और नरसिंह महाराणा हिंदी अनुबादक सहित सभी अधिकारियों /कर्मचारियों और भाइयों बहनों का |
हिंदी को विश्व फलक पर प्रतिष्ठित करने के लिए सरकार प्रयास कर रही है परन्तु यह प्रयास काफी नहीं है | हमें विश्व के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने की आवश्यकता है वरना हम पिछड़ जायेंगे और विकासशील देश हमसे आगे निकल जायेंगे |
भारतीयों को भले ही अंग्रेजी की ललक हो पर विदेशियों को हिंदी लम्बे समय से आकर्षित करती चली आ रही है | वर्तमान समय में हिंदी नेपाल, बंगलादेश, पाकिस्तान ,ओमान ,अमेरिका ,सूरीनाम ,जर्मनी ,फ्रांस ,ग्रीस ,त्रिनिदाद , इंडोनेशिया ,इजराइल , इक्वाडोर,टोबैको यमन गुयाना ,फिजी ,दक्षिण अफ्रीका ,मारीशस सहित विश्व के १३७ देशों में हिंदी बोली समझी जा रही है | हिंदी को जान्ने वाले १३००० मिलियन लोग हैं | विश्व के १५३ से भी अधिक विश्वविद्यालयों में अनुसंधान और अध्यन अध्यापन हिंदी का हो रहा है |
विश्व में ५१ करोड़ लोगो तक 'अंग्रेजी'की पहुच होने से अंग्रेजी पहली संपर्क भाषा है, तो वहीं हिंदी ४९ करोड़ लोगों तक पहुच रखने वाली दूसरी सबसे बड़ी संपर्क 'हिंदीभाषा' है |
हालैड में सन १९३० से ही हिंदी का अध्ययन हो रहा है जब कि भारत के कुछ लोग अभी भी पूर्ण रूप से स्वीकार नही कर पाए हैं | ब्रिटेन के लन्दन विश्वविद्यालय ,कैम्ब्रिज और यार्क वि.वि. में हिंदी का अध्ययन हो रहा है | आस्ट्रेलिया के वियना वि. वि. में भी हिंदी का अध्ययन हो रहा है | बेल्जियम के तीन वि. वि. में हिंदी का प्रमुख स्थान है |चीन में सन १९४२ से ही हिंदी प्रमुखता से पढ़ी जा रही है और १९५७ से अनुबाद कार्य चल रहा है | पेइचिंग व नानचिंग विश्वविद्यालयमें हिंदी पढ़ाई जा रही है | जापान में रेडियो से हिंदी में प्रसारण कार्यक्रम १९५० से हो रहा है | मारीशस में अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सचिवालय भी है | वही कनाडा में वर्षों से हिंदी पढ़ाई जा रही है ,सूरीनाम में छ: आकाशवाणी केंद्र और पांच दूरदर्शन केंद्र हैं | यहाँ हिंदी अच्छी स्थिति में है |

कार्य को गति प्रदान करने हेतु हमें सम्मानित साहित्य का अध्ययन करना उतना ही आवश्यक हो जाता है जितना आज के परिवेश में पानी बचाने का |
साहित्य का लक्ष्य सत्य की खोज या प्रतिष्ठा है | जो कार्य विज्ञान भी करता रहा है | साहित्य का निर्माण वैज्ञानिक दृष्टि- पद्धति से ही होना चाहिए जिससे ऐतिहासिक विकास हो | परिवर्तन की स्थिति में भी संस्कृति -सभ्यता सद्भाव पूर्ण सत्य साहित्य की छाप अवश्य छोड़े |
साहित्य का सम्बन्ध सदा व्यावहारिक सत्य से है, मात्र आदर्श या कल्पना से ही नही है | सत्य साहित्य ही समाज का सर्वांगीण विकास करता है |
सन १९५८ ई. के पहले दरवारी विकास की रचनाएं हुआ करती थीं | उन दिनों भारत के इतिहास में रीतिकाल की परम्परा का बाहुल्य था | साहित्यकार कवि जीविका पालन के लिए जीविका का आश्रय लेखनी को बनाया करते थे | वह वही कलम से लिखते जिसे उनके आश्रयदाता चाहते थे |
अंग्रेजों के शासन काल में राज्य परास्त होते गए और कवि जनता में जाने का रुख करने लगे जिससे साहित्य का विकास तेजी से होने लगा |
सन १८१७ ई. में राममोहन राय के प्रयत्न से हिन्दू कालेज (विद्यालय ) की स्थापना की गयी जो विवीध प्रान्तों में आगे चलकर स्थापित होता रहा |
भाषा को रूप देने में महात्मा गांधी का भी बड़ा योगदान था | भाषा की सफलता की प्रचेष्टाओं में गांघी जी के प्रभाव ने भी बड़ा महत्वपूर्ण काम किया | कांग्रेस की नीति से हिंदी - उर्दू का सामंजस्य करके एक नई भाषा हिन्दुस्तानी को जन्म दिया | जिसके पीछे उनका उद्देश्य था कि भाषा का स्टार ऊँचा हो |
विविध संस्थाओं ने भी हिंदी को अग्रसर किया इन संस्थाओं में नागरी प्रचारिणी सभा और हिंदी साहित्य सम्मेलन का नान प्रमुख रूप से लिया जाता है | हिन्दुस्तानी अकादमी ,विश्वविद्यालयों तथा हिंदी और अहिन्दी प्रदेशो की साहित्यिक परिषदों की सेवाएँ भी महत्वपूर्ण हैं |
इसी अवधि में हिंदी साहित्य का अच्छा विकास हुआ | सरस्वती पत्रिका के प्रकाशन से हिंदी साहित्य को विशेष बल मिला | सरस्वती के सम्पादन मंडल में सर्व श्री राधाकृष्ण दास ,कार्तिक प्रसाद खत्री ,जगन्नाथ दास रत्नाकर ,किशोरी लाल गोस्वामी और श्याम, सुन्दर दास जी थे | सरस्वती का सम्पादन सन १९०३ ई. से महावीर प्रसाद द्विवेदी जी करने लगे थे |
हिंदी सदा सामान्य बोल-चाल की भाषा में लिखी व पढ़ी जानी चाहिए | साहित्य उत्तम सत्य से परे साहित्य सर्वग्राह्य नहीं होता है | कविता के लिए भी यही बात लागू होती है |
हिंदी खड़ी बोली के जनक् भारतेंदु जी उच्च कोटि के विद्वान् कवि थे | माता -पिता का साया उठने के उपरान्त भारतेंदु में स्वच्छंद रहने की प्रबृत्ति बढीं | उनमें ईश्वर प्रदत्त प्रतिभा रही ( {राई से पर्वत करें राई राई पर्वत माहि} उनके साहित्यिक योगदान के कारण उनके युग भारतेंदु युग कहां गया | उन्होंने हिंदी के लिए लिखा है -
निज भाषा उन्नति अहै ,सब उन्नति को मूल
बिनु निज भाषा ज्ञान के ,मिटत न हिय को सूल |
भारतेंदु ने तत्लालिक सभी कुरीतियों के खिलाफ जोरदार आवाज बुलंद की और कहा देश जर्जर होता जा रहा है | उन्हों ने अपनी लेखनी को धारदार बनाया |
राष्ट्र कवि मैथली शरण गुप्त लिखा कि -
अहो मात्री भाषे ! दशा देखि तेरी ,
न हो निराशा कभी दूर मेरी ,
बड़ा कष्ट है तू अभी दीन ही हो ,
सभी जाति से हो रही हींन ही हो !
और कहा कि - पूज्य भूमि पर पाप कभी हम सह न सकेंगे ,
पीडक पापी यहाँ और हम रह न सकेंगे |
पंडित रामनरेश त्रिपाठी जी ने लिखा -
मन में देश भक्त बनने की उठी अटल अभिलाषा है !
सफल मनोरथ करो दयामय, हमें तुम्हारी आशा है |
मैं सभी के प्रति आभार व्यक्त करते हुए श्री जगन्नाथ जी और कोणार्क (अर्क क्षेत्र ) का नमन करता हूँ |
इस कड़ी में हिंदी पर मेरी दो पक्ति-
अंतिम पथ से कौन हमें रोकेगा ,
मैं हिंदी हूँ कौन कुटिल टोकेगा |
निज भाषा तो नगर शहर तक ही होगी !
हिंदी अपनी छाप विदेशों तक छोड़ेगी |
हिंदी पूरे विश्व में तेजी से फैल रही है| विदेशों के विविध विश्वविद्यालयों में पढ़ी -पढ़ाई जाने लगी है |
हम सभी को देश को गति प्रदान करने के लिए सच्चे मन से मनन -चिंतन करने की आवश्यकता है | पूरी निष्ठा ईमानदारी और दृढ़ इच्छाशक्ति से हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकारोक्ति हेतु कदम से कदम मिलाकर चलने की आवश्यकता है |
अंत में अपनी इन पक्तियों के माध्यम से सन्देश देना चाहूंगा -
चाह यह नहीं कि सिर्फ मेरा नाम पहुंचे ,
चाह यह कि पूरे विश्व को हिंदी का सलाम पहुंचे |
अध्यक्ष ,मुख्य अतिथि /अधिकारी ,कर्मचारियों एवं भाई -बहनो, बच्चों ने मुझे गंभीरता से सुना | सभी को मेरा प्रणाम सभी के प्रति आभार, आप सभी का हार्दिक अभिनंदन |
बहुत -बहुत धन्यवाद !

 

 


--
Sukhmangal Singh

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ