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भारतवर्ष में बौद्ध और हिंदू धर्म

 

"भारतवर्ष में  बौद्ध और हिंदू धर्म"

भारतवर्ष में मुख्य धर्म सनातन धर्म रहा है सनातन धर्म से ही बौद्ध धर्म की उत्पत्ति हुई। सनातन धर्म और बौद्ध धर्म के मानने वाले द्वेष भाव नहीं दिखाते थे। हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म के मानने वाले शताब्दियों तक साथ साथ प्रचलन में होने के बाद भी हिंदू लोग बौद्धों के मठो और विद्यालयों में जाते रहते थे। बौद्ध धर्मावलंबी ब्राह्मणों ऋषि-मनियों से विद्या सीखते थे।
गुप्त वंश के राजा शिव और विष्णु की पूजा करने वाले होते थे। किंतु वे बौद्ध मठों को और बौद्धों को दान उपहार और सहायता किया करते थे। जिस तरह से आज का भारत का शासक हिंदू शासक होते हुए भी मुसलमानों की सहायता करते आ रहे हैं । उन दिनों राजा- राजा,राजा का भाई, राजा का पुत्र आपस  में 2 मतों के होते हुए भी आपस में बैर भाव नहीं रखते थे।
समय के परिवर्तन इस समय ऐसा समय ला दिया है मानव राजनीतिक विचार की उत्तम सोच उठ गई हो।
राजनीति में सत्ता पर काबिज शासक का धुर विरोध होना शुरू हो गया है। अच्छी चीजों को भी झूठ फैलाया जाने लगा है। कार्य भले ही सही हो रहा हो बावजूद जनहित, में होने के बावजूद विपक्ष उस पर आक्रमण करने से बाज नहीं आता। लगता है राजनीतिक ही नता  के कारण सारस पक्षी में अपना स्थान छोड़ दिया हो। जैसे बगुले भी विहार करने से वे  बच रहे हों।केवल गिद्धों की झपट मारी चल रही हो ।
   प्राचीन भारत वर्ष की सभ्यता के इतिहास बाबू श्याम सुन्दर दास और गोपाल दास जी पारा गौर करें तो ज्ञात होता है  की उन दिनों जिस साहित्यकी रचना हुई उससे भी जानकारी मिलती है कि' इतिहास को सावधानी और ठीक रीति से जान्ने का यत्न करें'!(पौराणिक काल १०क ५ ) कहानी आदि को हटाकर देखें तो हम भारतवर्ष के इतिहास के प्रत्येक काल को साधारणतः समझ सकते हैं | 
भारत वर्ष के इतिहास को पुनः पढ़ने उसका आकलन करने छूटे हुए मुख्य प्रसंग को जोड़ने की आवश्यकता है | भारत प्राचीन काल से ही आक्रमण कारियों को झेलता आ रहा है उन शासक ने उस काल के इतिहास पुराण वेद आदि ग्रंथो में छेड़ छाड़ की यह हमारे साहित्य भी मानते आ रहे हैं | शास्त्रों में संशोधन हुआ अपने मन माफिक परिवर्तन उसमें जोड़ा गया | उन सभी विन्दुओं पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है |  एक समय ऐसा आया कि बौद्धों की अवनति का दौर चला उसी दौरान हिन्दू धर्म उठने लगा उठकर खड़ा होते होते उत्तम

  हिन्दुओं का विचार सामान्यतः साधारण आनंद का होना समझ में आता है | हम हिन्दुओं और बौद्धों के बीच उत्तम मुकाबले को भी समझ सकते हैं | जबकि धर्म में भेद बढाकर इतनी बुरी दशा में नहीं पंहुचा था कि वह असह्य हो जाय और क्लेश का कारण बने | स्थान को छूने को बेताब होने लगा | स्वभावतः होंडू धर्म को उठते देख आक्रमणकारियों को खला सहन नहीं हो सका और उन्होंने हमारे अनेक  अद्भुत धरोहर मंदिरों को नष्ट करने का कुचक्र रचा और उन्हें तोडा पतंतु अवशेष चिन्ह के रूप में मिलते रहे उन्हों मंदिरों में से अयोध्या का राम जन्म भूमि भी थी जिसके अवशेष खुदाई के बाद मिले थे जिन्हें मंदिर निर्माण प्रक्रिया २०२९ ई में अक्टूबर ५ को याद किया जाएगा | अवशेष संरक्षित किया जाना बताया जाता रहा है | इन्हीं दिनों अक्टूबर २० ई में काशी कॉरिडोर निर्माड के दौरान शिव मंदिर के अवशेष खुदाई में प्राप्त हुए हैं | काशी प्राचीनतम नगरी में से एक नगरी है |  

आक्रमणकारीयपन का क्रोध की अग्नि यहीं शान्ति नहीं होती है उनहोंने मंदिरों को धरासाई किया साथ ही बौद्ध शिला लेखों को भी जगह जगह भारी  हानि पहुंचाई | चीनी यात्री ह्वेनत्सांग ६२६ ई में भारत में प्रवेश करता है यात्री के रूप में और उसके पहले दो शताब्दी पहले  फाहियान भारत यात्री के रूप में आया था | ह्वेनत्सांग के एक आलेख से ज्ञात होता है कि भारतवर्ष के इतिहास के प्रारम्भ में होंदुओं के चाल व्यवहार और उनकी शिल्प कला का वर्णन किया है | उसने जलालाबाद जिले का जिक्र करते हुए लिखा है कि 'यहां के लोगों की चाल व्यवहार सादी  और सच्ची थी उनके स्वभाव उत्साहपूर्ण और वीरोचित थे | यहां बौद्ध धर्म का प्रचार अधिक था परन्तु होंडू धर्मावलम्बी लोग भी थे यहां शिवाला और पुजेरी भी थे | नगर के पूर्व दिशा में ३०० फीट ऊंचा एक स्तूप भी था जो सुन्दर पत्थरों पर काम किये हुए पत्थरों से अद्भुत रीति का था |' ह्वेनत्सांग से दो शताब्दी पहले आया फाहियान ने भी बौद्ध धर्म का प्रचार प्रसार भारत में देखा था | 

  ह्वेनत्सांग जिस समय सिंध नदी पार करके भारत में ६२६ ई।में प्रवेश किया वह रस्सों के सहारे ,कहीं कहीं लोहे ले सिक्कड़ो के सहारे नदी नाला पार किया था | वह आगे लिखता है की सड़कें ऊँची - नीची और ढालुआं थीं | पर्वत और दर्रे अन्धकार मई थे | उसके इस लेख से जाहिर होता है भारत उस समय भी काफी विकसित देशों में था | लौह और पाषाण कला की चाप भारत पर देखा |

ह्वेनत्सांग छोटे तिब्बत से कश्मीर राज्य के अधीन सिंह पुर तथा तक्षशिला की भी यात्रा की | सिंह पुर में उसने श्वेताम्बरी और दिगम्बरी जैनियों से भी मुलाक़ात की जैनी लोग महावीर की देव रूप में मूर्ती की पूजा करते थे | उन दिनों कश्मीर का क्षेत्रफल ९४०० मील का था उसकी राजधानी ढाई मील लम्बाई में और एक मील चौड़ाई में फैली थी | वह लिखता है कि वहां के लोग हलके और तुच्छ होते थे | निर्बल और कायर स्वभाव के थे  | उनका चेहरा सुन्दर होता था परन्तु वे बड़े धूर्त होते थे | यद्यपि वे लोग विद्या के प्रेमी और सुशिक्षित थे | उस समय तक कश्मीर में हिन्दू और बौद्ध दोनों थे सन्यासी और पुजेरी भी थे उन दिनों भी कश्मीर में कनिष्क का यश कीर्ति दूर दूर तक फैली हुई थी | 

  ह्वेनत्सांग ने बुद्ध के निर्वाण का समय अशोक के १०० वर्ष पहले का वर्णन किया और निर्वाण के ४०० वर्ष पूर्व गांधार का राजा कनिष्क राज गद्दी पर बैठा था | कनिष्क अशोक के ९०० वर्ष उपरांत अर्थात ७८ ई में राजा हुआ | कनिष्क ने अन्य देशो के दूतों के अपने देश में रहने  और उन्हें समुचित सम्मान देने का प्रबंध करता था 

·        मथुरा उस समय एक देश था मथुरा का घेरा 1000 मील का था और नगर 4 मील मे फैला हुआ था| मथुरा मेन उस समौ पूजेरी 2000 की तादात में होने का आकलन हवेत्सांगने किया था | लोग व्रती और पूजा पाठ करने वाले थे | झांकिया निकाली जाती थीं जिसके पताके रत्न जड़ित होते थे |

·        गढ़वाल और कमाऊ के नाम से जाना जाने वाला क्षेत्र उन दिनों व्रह्ंमपुत्र राजी के रूप में जाना पहचाना जाता था यात्री ने लिखा कि जहां स्वर्ण होता था और यहाँ बहुत काल तक स्त्रियाँ ही शासक थीं | इस लिए इस राज्य को स्त्रियॉं का राज्य कहा जाता रहा | राज्य करने वाली स्त्री का पति राजा कहलाता था | परंतु उसका पति ,राज काज के बारे में कोई बात नहीं जानता था |

·        अयोध्या के राजी का घेरा 629/30 ई में 1000 मील का था यहाँ तीन हजार पूजेरी पूजा पाठ करते थे अयोध्या के लोगों में कुछ बौद्ध और हिन्दू थे | यह राजी अन्न फल फूलों से भरा पुरा पूरा राज्य था |इस राजी कि जलवायु अच्छी थी | न बहुत ठंढ और न बहुत गरम ही थी |

·        प्रयाग का घेरा तीन हजार मील का था यहाँ अन्न कि पैदावार अच्छी थी | फल भी बहुतायत होते थे | लोग सुशील और भले मानुस होते थे और वे विद्या अनुरागी होते थे | यहाँ बौद्ध धर्म का सत्कार नहीं होता था | उयहान के लोग कट्टर हिन्दू थे | हवेनत्सांग ने यहाँ एक बड़े वृक्ष का वर्णन अपने आलेख मे किया है जो आज भी मौजूद है जिसे अक्षय वट कहा जाता है |

·        कौशांबी वह स्थान है जहां गौतम ऋषि ने उपदेश किया था कौशांबी राजी का घेरा 1200 मील का था | यहाँ  ईंख (गन्ना) और चावल प्रचुर मात्रा मे पाया जाता था| नगर भरा पुरा था परंतु वहाँ के लोग कठोर और उजड़ कहे जाते थे | फिर भी वे सच्चे और धार्मिक होते थे |  

·         शतद्रु (सतलज )इस राज का  घेरा 400 मील का था और इसकी राजधानी तीन मील मे फैली हुई थी | इस देश में अन्न फल के साथ ही सोना –चांदी और बहुमूल्य रत्न बहुत थे | उयहान के लोग रेशम के बहुमूल्य सुंदर वस्त्र पहिनते थे| उनके आचरण नम्र और प्रसन्न करने वाले थे वे बौद्ध धार्म पर विश्वास कराते थे |


कान्यकुब्ज राज्य का घेरा 800 मील का था इसकी राजधानी 4 मीललबबाई में एक मील चौड़ाई मे फैली थी,नगर के चारो ओर खाई थी आमने –सामने बजबूत ऊंचे बुर्ज बने थे | चारो तरफ बगीचे फूल झील और तालाब निर्मित थे जिसे देखकर मन मोहित हो जाता था | यहाँ के लोग सुखी सम्पन्न संतुष्ट थे लोगों के घर सुददृढ़ धनसंपन्न थे |फल फूल सर्वत्र बहुतात थे भूमि उपजाऊ थी | यहा कि जलवायु अच्छी थी | यहा इस राजी में बौद्ध और हिन्दू समान मात्रा में थे वे लोग विद्याध्यन में रूचि रखते थे | यहा 200 मंदिर थे 10000 पूजेरी थे |  

भारतवर्ष के इतिहास का अध्ययन करने से ज्ञात होता है भात्र संपन्न सुदृढ़ और सबल देश प्राचीन काल से ही रहा है | 

-सुखमंगल सिंह ,अवध निवासी  

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Sukhmangal Singh

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