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Dr. Srimati Tara Singh
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भाषा भारतीय संस्कृति की प्राणवायु

 

भाषा समाज की आत्मा है| वाग्देवी मनुष्यों को चिंतन की शक्ति देती हैं | वाक्तत्व विराट है | विचार भाषा के अभिव्यक्ति को परोशने का माध्यम है | विद्वान् चिंतन के द्वारा वाक्तत्व के मूल तक पहुँचते हैं | भाषा में शब्दों की भूमिका अहम होती है | अक्षरों से सातो प्रकार की वाणी (छन्द) गिनी जाती है | शब्दों को अभिव्यक्ति से विरत नहीं कहा जा सकता है | महापुरुषों ने शब्दों को सही सलीखे से आत्मसात किया | वाग्देवी को वाणी की अधिष्ठात्री कहा जाता है |जो भारतीय संस्कृति में मानी है | भाषा भारतीय संस्कृति की प्राणवायु है | सभ्यता- संस्कृति का प्रतीक रूप में शव्दकोश पर निर्भर है | व्याकरण ,अलंकार ,समास छन्द आदि विधायें शब्दों की सुन्दरता के संप्रेषण से अलंकृत होते हैं | काल-परिस्थिति समय के साथ - साथ भाषा को समृद्ध करती है | भाषा हमें एक दूसरे से रूबरू कराती है मेल-मिलाप कराती है | परिचय करने में हमारी सहायता करती है |-
माता है जैसी पूज्य सुनो हे भाई |
भाषा है उसी प्रकार महा-मृद्न्दायी||
माता है पूज्य विशेष देश-भाषा है ,
मिथ्या वह हमने बचन नहीं भाखा है |(महाबीर प्रसाद द्विवेदी )||
भारत विविध भाषा,धर्म,सभ्यता - संस्कृति को अपने में आत्मसात कर चलने वाला दूसरा स्थान प्राप्त देश है | जिसमें कुल मिलाकर सात सौ अस्सी बोली भाषा बोली समझी जाती है | पहले स्थान पर देश आठसौ उनतालीस बोली भाषाओं का पापुआ न्यू गिनी का नाम आता है |(लेखक एम् वैकया नायडू जागरण अक्टूबर १८,२०१७ )|
माता से जग के बीच जन्म मिलता है ,
भाषा से सब व्यवहार सदा चलता है |
दुसरे ही उसकी कीर्ति विन गाते हैं ,
तत्सेवा कर आनन्द अमित पाते हैं |(महाबीर प्रसाद द्विवेदी )|
साहित्य और भाषा के साथ साथ अपनी संस्कृति ,ओना शिल्प, अपनी संगीतकला के पुनरुत्थान की प्रबलता की आवश्यकता होती है | लोगों में चित्रकला मूर्तिकला ,भवन निर्माण कला ,संगीत कला आदि में दस्तचित्त देखा जाता है |- हिंदी साहित्य के इतिहास से साभार | परन्तु आज के तथाकथित लोकतंत्र के रक्षक कहे जाने वाले लोगों में भाषा के प्रति सजगता संप्रेषण की क्षमता में गिरावट दर्ज की जा रही है|हमें भाषा के समुचित ज्ञान और सम्प्रेष्ण की कला का अध्ययन करना होगा |
भाषा में नव उल्लास लिए ,
नव अभिलाषा विश्वास जगे |
पावस ऋतू सा क्या जीवन ,
श्रद्धा समता सत्कार जगे |
सभ्यता-संस्कृति साथ लिए ,
साहित्य में श्रृंगार जगे ||(स्कन्द गुप्त से साभार )
भारतीय साहित्य की स्थापना सन १९१० में,अखिल भारतीय हिंदी साहित्य संमेलन की स्थापना की गई |विकास में इसका योगदान था और है भी | हिंदी भाषा की बात करें तो विभिन्न क्षेत्र में ,विभिन्न भाषा और रूचि के लोगों ने हिंदी को अपनाया |
अपनाने के अधिकार के साथ कुछ कर्तव्य भी था जिसकी ओर लोगों का समुचित रूप से ध्यान नहीं गया था ,ध्यान देने की आवश्यकता नहीं समझी गई | साहित्य साधना के लिए जो शिक्षा और संस्कार अपेक्षित था उसकी उपेक्षा हुई | फल यह हुआ कि भाषा सम्बन्धी अराजकता फैल गई | जिसने भी चाहा हिंदी में अपने ढंग से बोलना और लिखना आरम्भ कर दिया |(हि.सा .का वृ.इतिहास पृष्ठ ८ से साभार )|
निराला नव जागरण काव्य के कवि हैं उनका काव्य विविधता पूर्ण सृजन है |रचना में साहित्य सृजन और भाषा की गहन संवेदना है | लिखा कि-
जागो जागो आया प्रभात ,
बीती वह,बीते अन्धरात |
भाषा को खिचड़ी बनाकर परोशने का काम आज लोकतंत्र में लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ भी करने में पीछे नहीं हैं |तथाकथित कवि /लेखकों पर भी पश्चिमी सभ्यता की छाप पड़ती दिख जाती है यद्यपि पूर्ण रूपें नहीं | घालमेल की भाषा को परोस कर निज ऐश्वर्य की अनुभूति का आकलन करते हैं| ऐसे स्वयंभु साहित्यकारों को कुछ मिले न मिले पर समाज में भाषा भाषा के माध्यम से विकृत साहित्य परोष कर विकृति ही फैलाने का कार्य में संलग्न हैं |कवि निराला जी लिखे हैं कि-
हिंदी क विशाल मंदिर की वीणा-वाणी ,
स्फूर्ति- चेतना -रचना की प्रतिभा कल्याणी |
शिष्टशव्दों से भाषा की परम्परा और पर्यादा के साथ साथ आदर्श की प्रतिष्ठा विद्दमान रहती है | संस्कृति और सभ्यता संस्कार के पालन में सीख प्रदान करते हैं | हमें जीवन को गतिवान रखने हेतु आदर्श रूप में राम,लक्ष्मण भरत और शत्रुघ्न से सीख लेने की आवश्यकता है | भगवान बुद्ध ,राजा मान्धाता और हरिश्चंद जैसे महापुरुषों को कभी नहीं भूलना चाहिए | महापुरुषों के जीवन से सीख मानव जीवन में परमावश्यक है |
भाषा अनेकता में एकता की कड़ी है ,बोलियों की सशक्त लड़ी है |
तत केवलं कृणुते ब्रह्म विद्वान् |
विद्वान ब्रह्मचारी ब्रह्मज्ञान फैलाता है( श्लोक २०५६ पृष्ठ १६६ वेदामृतम अथर्ववेद सुभाशितावली पद्म श्री डा ०कपिलदेव द्विवेदी से साभार)|
मैं और स्वाभिमान को त्यागकर आपा खो जाने पर भी हमें मीठी और सुन्दर वाणी बोलनी चाहिए | कहा गया है कि-
ऐसी वाणी बोलिए मन को आपा खोय
औरन को शीतल करे आपहुं शीतल होय |
आधुनिक भारत में भाषा के सम्प्रेष्ण के लिए पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी 'दा'जी के जीवन से भी सीख लेने की आवश्यकता है |आवश्यकता है ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जी से और वर्तमान प्रधान मंत्री नरेन्द्र भाई मोदी जी से जो प्रतेक कार्य को टीम भावना से करने और विकास के मार्ग पर चलने की राह प्रसस्त करने में दिन-रात मेहनत के साथ कदम बढ़ाकर चल रहे हैं | उनके अपने सभी भाषण मेंसुन्दर शब्दों का चयन और वाक्यों की माधुर्य झलकती है | कवियित्री महादेवी वर्मा जी ने लिखा है कि-
उड़ा तू छन्द बरसाता /
चला मन स्वप्न बिखराता/
अमित छबि की परिधि तेरी /
अचल रस-पार है मेरा |(E H D -2 हिंदी काव्य पृष्ठ १२१ से साभार )
साहित्य के फैलाव (विस्तार) में शोसल मीडिया की भी अहम भूमिका है | भारत के माननीय महामहिम राट्रपति रामनाथ कोविंद जी ने भाषा पर विशेष बल देते हुए न्यायान्य में होने वाले फैसलों की प्रमाणित प्रतियों को जारी करते समय केरल हाई कोर्ट निर्देशित किया| हीरक जयंती समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति जी ने कहा कि-'ऐसा तंत्र बनाया जाना चाहिए जिससे हाईकोर्ट द्वारा फैसलों की स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषाओं में प्रमाणित प्रतियां उपलब्ध कराई जाएं | जिसे फैसला सुनाये जाने के २४ से ३६ घंटे के बाद उपलब्ध कराया जा सकता है|
यूनेस्को के महानिदेशक ने अध्ययन के रूप में मात्रि भाषा के महत्व को कुछ इस रूप में रेखांकित किया कि - 'अध्ययन ,आत्मसम्मान और स्वाभिमान का स्तर सुधारने में मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करना बेहद आवश्यक है जो विकास के सबसे प्रमुख पहलुओं में शुमार है '| उक्त सम्बोधन इक्कीस फरवरी का है |
डा .बाबूरा सक्सेना का मानना है कि- ,जिन ध्वनि चिन्हों द्वारा मनुष्य परस्पर विचार विनिमय करता है उसे भाषा कहते है |विचारों की स्पष्ट अभिव्यक्ति के लिए भाषा और शब्दों की स्पष्टता जरूरी होती है' | भाषा की सरलता ,लोकप्रियता का सशक्त माध्यम है
हम हिंदी भाषा की यदि बात करें तो उसमें आधुनिक युग की खोज परक नई टेक्नालाजी से सम्बंधित शब्दों को शब्दकोश में बढाए जाने पर कार्य करने की आवश्यकता है |

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Sukhmangal Singh

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