संकट सा दौर पड़ें ना किसी पे -
दुःख सुख तो आते जाते हैं !
अवसाद जब जीवन घेर लेता '
सम्बन्धी भी घबराते हैं |
निज गुस्सा सिर चढ़ बोले ,
धर-घर कलह कराता है |
मानो नीद को पर लग जाता ,
बैठे -बैठे भोजन आता |
बातें अपनी मनवाने में ,
जीवन जानो भर जाता है |सुख -दुःख ....|
धर मुहल्ला रूठा-रूठा सा ,
अपने में मन मद माता है |
कुछ भी अपने पास नहीं जो
जी अन्दर -अन्दर घबराता है |
कभी -कभी मन में पल आता ,
कौन पाप हमको खाता है |
भव-भूत -प्रेत सो चाव चढ़े ,
भाव अच्छत-चन्दन बढ़ जाता |सुख -दुःख ....|
मन की नव झिलमिल अभिलाषा ,
काया झंकृत कर जाती है |
शोक युक्त निर्जन नव पथ पर ,
खिलकर बिकल हँसी आती है |
रजनी किस कोने छुप बैठी ,
मधुर जागरण लुट जाता है |सुख -दुःख ....|
संकट का दौर पड़े ना किसी पे -
शीतल प्राण बल खाता है |
कपटी व्याकुल आलिंगन से ,
जीवन की चपलता जाती है |
आशा-कोमलता तंतु - दिखे ,
नारी अपनी कह जाती है |
वह नीड़ बना छुट जायेगा
आकुल भीड़ बता जाती है ||
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Sukhmangal Singh
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