जय हनुमान गदा कहाँ ,कलियुग दिखता नहीं यहाँ |
रोटी छिनने के दर में सब ,करना तुमको है कल्याण |
जाति-पांति की रोटी पकती ,खाते हैं सकल जहान |
सदियों से लोग कहते आये ,तू ही कलियुग में बलवान |
स्वच्छता की अलख लिए ,घूमत फिरत सकल जहान|
वेवस दिखता रहा महकमा ,तकनीकी का गुणगान |
बहुमंजिली इमारत बनती ,पोखर बने कहाँ सुजान |
साम ढलते सडक किनारे , मयखाने चढ़ते परवान |
Sukhmangal Singh
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