Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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गंगा एक चिंतन

 

 

लो गंगा की सफाई का डंका खूब बजाया |
गंगा से निकला कचरा उत गंगा में बहाया ||
गंगा! तलहटी के कचरे को बाहर फैलाया |
मौक़ा मिलते ही लोगों ने गंगा में बहाया||
रात - रातभर मसान में मंत्र सिद्धि कराया |
फिर क्या रक्षा हित विवेक ध्यान न आया ||
बोली गंगा! बोली ले जा कचरा साफ करो |
हीरा - मोती और कौड़ी कानी पास धरो ||
नारों से केवल गंगा साफ नहीं होती हैं |
मानवमन हो चंगा बिन माफ नहीं करती है ||
बालू- बल अपने फसल खेत उपजाऊ करो |
निरा वालू समझ कर मेरा ह्रदय ना भरो ||
ललित गीत प्रगीत विविध आयोजन क रवानी |
आत्म कथा वर्ष सदियों अपनी रही कहानी||
कौन साफ कर पाया मुख से बोली बानी |
साज सिंगार चौकस सभा की रही कहानी ||

 


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Sukhmangal Singh

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