“हूँ कवि मैं सरयू -तट का”
जनमेजय – सगर और भगीरथ
आदि कई हुये थे समरथ
अयोध्या की आगे बढ़ी कहानी
आये चक्रवर्ती सम्राट श्री दशरथ
राज्य शुरू हुआ दशरथ का
कवि हूँ मैं सरजू -तट का
राम-लक्ष्मण – भरत – शत्रुघ्न
चारो पुत्रों नें जन्म लिया
चाँदीपुर ,चंद्रिका धाम में जाकर
गुरुजनों से शिक्षा ग्रहण किया
ज्ञान मिला हमको घट –घट का
कवि हूँ मैं सरजू -तट का
गंगा – सरयू मिलन जहां पर
सभी वहाँ खेलने जाते थे
और वहीं आखेट की विद्या
गुरु शृंगी से पाते थे
रहा नहीं कोई भी खटका
कवि हूँ मैं सरजू -तट का
विश्वामित्र यज्ञ रक्षा को
श्री राम – लक्ष्मण हुये रवाना
ताड़का और सुबाहु जब मारा
खुशियों का न रहा ठिकाना
वही से ध्यान लगाये जनकपुर –गंगा तट का
कवि हूँ मैं सरजू -तट का
धनुष – यज्ञ के बाद जुड़ गये
सीताराम – सीताराम
सीता – हरण साधु बन किया
रामण का हो गया काम तमाम
कथा बन गई ,राम –राम रट का
कवि हूँ मैं सरजू – तट का
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