Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हूँ कवि मैं सरयू -तट का

 

“हूँ कवि मैं सरयू -तट का”

जनमेजय – सगर और भगीरथ

आदि कई हुये थे समरथ

अयोध्या की आगे बढ़ी कहानी

आये चक्रवर्ती सम्राट श्री दशरथ

        राज्य शुरू हुआ दशरथ का

        कवि हूँ मैं सरजू -तट का   

राम-लक्ष्मण – भरत – शत्रुघ्न

चारो पुत्रों नें जन्म लिया

चाँदीपुर ,चंद्रिका धाम में जाकर

गुरुजनों से शिक्षा ग्रहण किया

        ज्ञान मिला हमको घट –घट का

         कवि हूँ मैं सरजू -तट का   

गंगा – सरयू मिलन जहां पर

सभी वहाँ खेलने जाते थे

और वहीं आखेट की विद्या

गुरु शृंगी से पाते थे

         रहा नहीं कोई भी खटका

         कवि हूँ मैं सरजू -तट का

विश्वामित्र यज्ञ रक्षा को

श्री राम – लक्ष्मण हुये रवाना

ताड़का और सुबाहु जब मारा

खुशियों का न रहा ठिकाना

       वही से ध्यान लगाये जनकपुर –गंगा तट का

         कवि हूँ मैं सरजू -तट का   

धनुष – यज्ञ के बाद जुड़ गये

सीताराम – सीताराम

सीता – हरण साधु बन किया

रामण का हो गया काम तमाम

             कथा बन गई ,राम –राम रट का

             कवि हूँ मैं सरजू – तट का 

                   ***  

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