सपने बो रहे !
एक आदमी दिन में ही/
आसमान के तारे खोज रहा/
और उसे बोने के खातिर/
जमीं टटोल रहा |
अँधेरी रात उसके/
कुत्ता रो रहा/
आदमी के तारे खोजने/
और कुत्ते के रोने से बेखबर/
एक दूसरा आदमी/
कुछ दूर तालाब किनारे/
सपने बो रहा/
सो रहा ||
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Sukhmangal Singh
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