Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कैसे सपने बो रहे !

 

सपने बो रहे !

एक आदमी दिन में ही/

आसमान के तारे खोज रहा/

और उसे बोने के खातिर/

जमीं टटोल रहा |

अँधेरी रात उसके/

कुत्ता रो रहा/

आदमी के तारे खोजने/

और कुत्ते के रोने से बेखबर/

एक दूसरा आदमी/

कुछ दूर तालाब किनारे/

सपने बो रहा/

सो रहा ||

--
Sukhmangal Singh

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