“करुणा निधान “अद्भुत चरित्र समभाव और सत्य -संकल्प है जिनका
निर्गुण होने के कारण , दैत्यों से बैर नहीं उनका
कहता ‘मंगल ‘ सत्वगुण,रजोगुण,तमोगुण नहीं उनका
काल समय के साथ गुणों को ,स्वीकारना काम विधिका
प्राणियों को प्रिय -प्यारे और सुहृद मेरे भगवान
भेद- भाव रहित स्वभाव के, हमारे कृपानिधान
दैत्यों का भी बध ,इंद्र निमित्त किये थे करुनानिधान
स्वयं में पूर्ण -परिपूर्ण कहलाते कृपा निधान |
रज और तमोगुण बढ़ने से ,दैत्यों का साथ निभाते हैं
सत्व गुण वृद्धि होने पर ,ऋषियों को अपनाते हैं |
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