Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

काशी जैसा अविमुक्त क्षेत्र नहीं

 

काशी जैसा अविमुक्त क्षेत्र नहीं"               

अगस्त मुनि काशी से विंध्य पर्वत होते हुए गोदावरी तट पर रहकर पूजा पाठ करते थे। कभी-कभी बिहवल हो कर दौड़ते लड़खड़ाते बैठते उठाते! इधर-उधर भ्रमण करने लगते  थे।कभी-कभी मुक्ति दिशा उत्तर से आने वाली हवाओं का आलिंगन करते और उससे काशी का कुशल क्षेम पूछते रहते थे।

        ऐसा होता भी क्यों नहीं क्योंकि ब्रह्मा  जी ने सृष्टि जगत में काशी नगरी के समान रचना की ही नहीं  है ।स्मृतिमें
 पुराणादी के अनुसार काशी नगरी के समान अविमुक्त क्षेत्र अन्यत्र नहीं है।
पुराणों के अनुसार यह आद्यवैष्णव स्थान है । पहले यह भगवान विष्णु बिंदु माधव पूरी की थी। जिसे विष्णु (माधव) की पूरी कहीं जाती थी।ऐसी कथा है कि भगवान शंकर ने खुद ब्रह्मा  जी का पांचवा सिर काट  दिया था जो  उनके त्रिशूल  से चिपक गया |  जिसे लेकर बाहर  विविध दयूपों - लोकों में   भ्रमण करते रहे भ्रमण करने के उपरांत भी वह सर  त्रिशूल से अलग नहीं हुआ था परंतु उन्होंने जैसे ही  काशी की सीमा में प्रवेश किया वैसे ही  भगवान शंकर के त्रिशूल से वह सर  अलग हो गया। सीमा में प्रवेश करते ही उनका व्रह्म  ह्त्या से  पीछा छूट गया और वह कपाल भी  त्रिशूल से अलग हो गया। यह घटना जहां घटी उस स्थान का नाम कपालमोचनतीर्थ कहा जाता है। हत्या के दोष से मुक्ति मिल जाने के कारण भगवान शिव को काशी नगरी बहुत अच्छी लगी|  इस पावनपुरी को भगवान अपने नित्यआवास के लिए भगवान विष्णु से  मांग लिया। तभी से काशी उनका निवास स्थान हो गई।
जगत प्रसिद्ध जावालि  ऋषि ने जिसे कहा है-
अस्सी  नदी को इडानाडी, वरुना  नदी पिंगला नाड़ी, और दोनों के मध्य क्षेत्र को सुष्मनानाडी कहा  है।
कथा के अनुसार महाराज सुदेव के पुत्र राजा दिवोदस ने गंगा तट पर  वाराणसी नामक एक  नगर बसाया था। कहा जाता है कि भगवान शंकर ने जब देखा कि पार्वती जी को मायके में (हिमालय पर्वत पर स्थित ) रहने में संकोच होता है और भगवान शंकर के सानिध्य में रहने की इच्छा जाहिर की !भगवान शंकर ने उन्हें काशी में जगह बनाई जो  कालांतर में उन्हें अतिप्रिय लगी।
भगवान् शिन का भगवती पार्वती के प्रति कथन में कहा गया कि - 
वाराणसी मेरा परम रहस्य्मय क्षेत्र है जो सदा सर्वदा यहां बसने वाले सभी प्रकार के प्राणियों को मोक्ष देने वाला है | इस क्षेत्र में निवास करना अच्छा लगता है | मेरे भक्त मुझे अपना मन और नित्य अपनी क्रियाएं समर्पित करने वाले भक्तगण यहाँ विद्यमान हैं | इस क्षेत्र में योगयुक्त और जितेन्द्रिय महात्मा परम योग की साधना करते हैं | मेरे लोक की कामना की आकांक्षा रखने वाले विविध रूप धारी सिद्ध पुरुष यहाँ निवास करते हैं | यह मेरा अपना दिव्य गुह्य महान क्षेत्र है | यह मेरा परम क्षेत्र है यहां मेरी परम गति है यह मेरे द्वारा न ही विमुक्त हुआ है और न ही इसका मैं कभी भी त्याग करूंगा | मेरा यह क्षेत्र अविमुक्त क्षेत्र के नाम से जाना जाता है | यहाँ सांसारिक प्राणी को शरीर त्यागने से मोक्ष का पात्र होता है | 
            काशी की महिमा अपरंपार है जिसे अलग-अलग  तरह से मुनियों ने वर्णन किया है। काशी में जो मनुष्य तीन रात्रि उपवास ब्रत , स्वर्ण दान, गोदान तीर्थ यात्रा नहीं करता कहा जाता है वह जन्म जन्मांतर दरिद्र हो सकता है।
         अगस्त मुनि ने कहा  तीर्थ का फल कैसे मिलता है आपकी जानने की उत्सुकता अवश्य ही हो सकती है। ऋषि कहते हैं कि तीर्थ यात्रा के पूर्व दिन से ही घर में उपवास करके गणेश पूजन, ब्राह्मण भोजन, साधु सेवा करनी चाहिए। इसके उपरांत यथा  शक्ति दान देना चाहिए  ,पितृ श्राध्य  करना चाहिए  और किसी भी यात्रा को प्रारंभ करनी के पूर्व नियम धारण , संकल्प युक्त होकर ही  यात्रा करनी चाहिए |  यात्रा से आने पर श्राद्घ  करें । यह भी ध्यान देने योग्य की यात्रा में कभी भी ब्राहमणो की परीक्षा नहीं करनी चाहिए । तीर्थ में ब्राह्मणों की सेवा करे। खोवा - माड रहित भात से पिंडदान करना चाहिए।
                यद्यपि काशी जैसा अविमुक्त क्षेत्र अन्यत्र कहीं भी नहीं है उसी प्रकार प्रयाग जैसा परम पूज्य प्रसिद्ध तीर्थ  शास्त्रों की मानें तो नहीं है। जो धर्म,अर्थ,काम, मोक्ष का दाता है। त्रिवेणी तीर्थ है प्रयाग !
शास्त्रों में गयातीर्थ को पितरों को मुक्ति देने वाला तीर्थ कहा गया है। इस तीर्थ में  पितृ- पितामह को श्राद्ध देने से उनके पुत्र - पौत्र भी मुक्त हो जाता है।
यह जानकारी साझा किया लोपमुद्रा जी ने जो अगस्तमुनि की तपोस्थली में पत्नी के पूछने पर अगस्त मुनि द्वारा बताया गया है कि - मोक्ष तीर्थ कौन हैं? इस जानकारी  के साथ हमें उन तीर्थो की जानकारी साझा  करते हैं-
नैमिशारण्य , कुरुक्षेत्र,गंगा, हरिद्वार, अवंती, अयोध्या,मथुरा,द्वारिका, सरस्वती,सिंध, संगम स्थल,गंगा सागर, संगम कांची, ब्रहमगिरी, सप्तगोदवरी, कालांजर प्रभास,बद्रिकाश्रम महालय, अमरकंटक, जगन्नाथ पुरी,गोकर्ण, भृगु कच्छ, भृगुदुग पुष्कर, श्रृंग पर्वत, धारा तीर्थ वाह्य तीर्थ, और सप्तादिक मानस तीर्थ मोक्ष तीर्थ में से हैं।
इन तीर्थों के दर्शन पूजन यात्रा करने से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। आप किसी भी प्रयोजन से किसी भी यात्रा पर निकले हों तो जातक कार्य करने के बाद तीर्थ में पहुंच गए हों तो उस तीर्थ में स्नान दान जप - तप करने का विधान किया गया है। जप -  तप से तीर्थ यात्रा करने का फल मिल जाता  है। 
मानस तीर्थ में स्नान करने से मानव में पवित्रता,निस्कामता,मृदुलता,सरलता,सत्य अहिंसा, दम, शम, तथा सभी मनुष्यों में प्राणियों के लिए करुणा की कृपा बनी रहती है।
अब आप उन सातो नगरी जिनके दर्शन पूजन यात्रा करने से मुक्ति मिलती है उनका वर्णन करते हैं-
प्रथम काशी, कांची, माया पूरी, अयोध्या, द्वारावती, मथुरा और अवंतिका का वर्णन किया गया है जो मोक्ष तीर्थ प्रदान करने वाली है।
वहीं विनय पत्रिका में गोस्वामी तुलसीदास दास जी ने कैलाश को शिव का भवन और काशी में आसनस्थ हैं कहा गया है।
काशी में उपवास करके चातुर्मास करने का विधान है। चातुर्मास एक स्थान पर रहकर नहीं किया जाता है।   बराबर जगह को बदलते रहना चाहिए।
काशी क्षेत्र पुरी पीठ की सीमा क्षेत्र में आता है | काशी बाबा विश्वनाथ की नगरी है | अनादिकाल से यह सनातन धर्मियों का सर्व प्रमुख तीर्थ क्षेत्र है | यह मुक्ति भूमि है | सनातन काल से काशी नगरी ज्ञान को प्रमाणित करने वाली ,ज्ञान देने वाली नगरी रही है | यह अनादिकाल से स्थापित नगरी है |  
- सुखमंगल सिंह, अवध निवासी 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ