१-लाख मुसीबत डगर में ,
पिता समझाते तो हैं !
स्वर मिले ना मिले-
राह बतलाते तो हैं !!
२- डगर की कठिनाइयों में माँ ,
वह लोरियां गाती तो है !
मारती दुलारती फिर भी,
हाथ पकडे आती तो है |
३- आपका सर श्रद्धा से जब भी झुका ,
अपने बाप का पैर जाने क्यों दबा |
४- धर्म क संकट से भला आस्था भारी ,
इसीलिए फैले हैं जहा में व्यभिचारी ?
५- शान्ति मिलती है मुझे मेहनत की कमाई में ,
पैसे सारे खिसक गये पत्नी की दवाई में |
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Sukhmangal Singh
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