"मौसमी शहनाई"
पछुआ ने डोल भरे, पुरुवा के द्वार
फूट चला बादल से, आवारा धार।
ग्रीसम के दाघ घरा, तय समा गई
आदर के चादर क्षिति, रिमझिमा गयी।
कुसुम कली खिल गयी,बरखा बहार
फूट चला बादल से आवारा धार।
साज सजे उपवन में, हो उठा भोर
चित्त चाह चितवन का चहका चकोर।
माटी की गंध भीनि, पसरै दुलार
फूट चला बादल से आवारा धार।
मौसम की शहनायी, गुज्जर के गीत
बांट रही पाल्सी सनेह उड़ल रीत ।
याद आतीं 'मंगल ' मन पावसी फुहार
फूट चला बादल से आवारा धार।।
- सुख मंगल सिंह
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