" नागार्जुन और उनकी रचनाएं "
कवि और लेखक नागार्जुन जी जन्म मधुबनी के सतलखा नामक गांव (ग्राम )में हुआ था। यहां उनका ननिहाल था। उनके पिता गोकुल नाथ मिश्र और माता उमा देवी थीं। यह लोग दरभंगा जिले के तरौनी नामक ग्राम में रहते थे।नागार्जुन का घर का पुकारू नाम ' ठक्कन,' था। वास्तव में इनका नाम बैजनाथ मिश्र और बाद में नागार्जुन के नाम से पुकारें जाने लगे। इनका जन्म 30 जून 2011 ई. और देहावसान 5 नवंबर 1998 ई.में हुआ। यह हिंदी और मैथिली के लेखक और कवि थे। इनको प्रगतिशील विचार धारा के कवि साहित्यकारों में कहा जाता है। यह मैथिली भाषा में यात्री उपनाम से लिखते थे।इनके माता - पिता को संतान हीनता के कारण जब जन्म इनका हुआ तो इनको जीवित रहने के लिए इनका सुंदर - सुंदर नामकरण से बचकर माता - पिता ने इनका नाम रखा, ढक्कन के नाम से जाना गया। इनके माता पिता आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे थे जिसके कारण कृषि परंपरा का निर्वाह ठीक से नहीं कर पाए। संभवत इसीलिए आगे चलकर कवि नागार्जुन ने रचना लिखाकि -दाने आये घर के अंदर कई दिनों के बाद,धुआं उठा आंगन से ऊपर कई दिनों के बाद।चमक उठीं घर भर की आंखें कही दिनों के बाद,कौवे ने खुजलाई पांखें कई जिलों के बाद।नागार्जुन की शिक्षा - दीक्षा आगे चलकर बाराणसी से हुई एक सांस्कृतिक और सांस्कृतिक नगरी में आने की वजह से इनके अंदर कवि रूप जाग उठा जिससे कविता और लेखक में रुचि रखने का विचार प्रगाढ़ हुआ होगा। इनकी माता का निधन हो गया था। ममता के अभाव में पारिवारिक माया मोह से मुक्त होकर स्वाध्याय चिंतन, पंडिताई कि परंपरागत व्यवसाय से दूर रहे। लेखन की दिशा में आगे बढ़े प्रयास करने लगे थे। वाराणसी में आकर आपने राजनीति की शिक्षा ग्रहण की।चंपारण में नीलहे गोरों के अत्याचार के विरुद्ध सत्याग्रह चला।अप्रैल 13,1919 ई. में जलियां वाला बाग और अंग्रेजों ने सैकड़ों भारतीयों को गोलियों से भून दिया। इस प्रकार अनेक घटनाओं ने सन 1920 ई में देश का वातावरण गरम कर दिया। इसके पूर्व सन 1905 ई. में असहयोग आंदोलन चला । अनेक आंदोलन की वजह से हिंदी भाषी प्रदेशों पर विशेष अवसर पड़ा।प्राय: यही देखा जाता है कि साहित्यकार खोज में लगा रहता है। ज्ञान की खोज में उसकी जिज्ञासा उसको अनेक धर्म संप्रदाय भाषा संस्कृति संस्कृत का ज्ञान कराती है। उन्हीं खोज के दरमियान आपने बौद्ध धर्म, आर्य समाज, संस्कृति और पाली, प्राकृत भाषा साहित्य की गंभीर चिंतन की ओर अग्रसर होना स्वाभाविक है।देश विदेश की घटनाएं समाचार पत्रों और पत्रिकाओं द्वारा ज्ञान प्राप्त होने से चेतना का विकास हुआ, विकास स्वाभाविक होता है। आपने लिखा -जनता मुझसे पूछ रही है,क्या बतलाऊं!जन कवि हूं मैं, साफ कहूंगा,क्यों हकलाऊं!विश्वयुद्ध हुआ था अनेक देशों पर किसका प्रभाव पड़ता गया।सामंती उत्पीड़न और विलासिता पूर्ण जीवन के विरुद्ध किसानों ने एक जुटता नहीं हो सकी। संभवत: जनता की दरिद्रता और उसकी दशा का वर्णन आपने कुछ इस प्रकार किया।यथा -काले -काले रितु रंग,काली - काली धनघटा,काली - काली गिरि श्रृंगकाली काली छवि छटा ।काले - काले परिवेशकाली - काली करतूतकाली - काली मंगाईकाले - काले अध्यादेश।उस समय भी समाज मंगाई से जूझ रहा था। देश गोरों की अत्याचार से जूझ रहा था। उसी समय सन 1930 में सत्याग्रह संग्राम हो गया। महात्मा गांधी नमक आंदोलन छोड़कर सत्याग्रह का संकल्प लिया। यह सत्याग्रह आंदोलन व्यापक और देश में अमूल चूल परिवर्तन किया देश को झकझोर कर रख दिया।नागार्जुन कालिदास से लेकर लाल बहादुर शास्त्री आदि पर युग संवेदना की कविताएं लिखते थे। उनकी एक रचना प्रस्तुत करें -प्रतिबद्ध हूं जी हां, प्रतिबंध हूं -बहुजन समाज की अनुपम प्रगति के निमित्त,संकुचित स्व की आपाधापी के निवेधार्ये।अंध - बधिर व्यक्तियों को सही राह बताने के लिए!नागार्जुन के सबसे अधिक प्रिय कवि निराला जी थे।उन्होंने निराला जी के साहित्य प्रेरणा से गद्द और पद्य दोनों का लेखन करने का काम किया और अपनी लेखनी को आगे बढ़ाया। उनके काव्य संग्रह में प्रकृति प्रेम झलगता है।उन्होंने लिखा है कि -पीपल के पत्तों पर फिसल रही चांदनी,नालियों के भीगे हुए पेट पर, पास ही।जम रही, घुल रही, पिघल रही चांदनी,पिछवाड़े बोतल के टुकड़ों पर,चमक रही, दमक रही, मचल रही चांदनी,दूर अधर, बुर्जों ऊपर उछल रही चांदनी।नागार्जुन जी मानते हैं कि जीवन में नई प्रेरणा लाने का काम प्रकृति करती है।उन्होंने बादलों को गीते हुए देखकर अपनी रचना की माध्यम से लिखा-मैंने तो भीषण जोड़ों में / नभ चुंबी कैलाश शीर्ष पर महा मेघ की झंझानिल से / गराज - गरज भिड़ते देखा है/ बादल को घिरते देखा है।उनकी निगाहें बादल, पहाड़, नदियां, पशु - पक्षी आदि पर भी विचार विमर्श किया करती थीं।उनका जीवन शहरी क्षेत्रों तथा गांव से भी प्रभावित यथार्थ के प्रति उनका झुकाव था। जंगल शहर पहाड़ गांव और आदिवासियों के क्षेत्र का चित्रण उनकी लेखनी में देखने को मिलता है।यथा -साखू के पत्ते वाले दोनें में, साथ साथ पीते कुल्फी।चखते भुना हुआ गोश्त , सूअर का साथ साथ।फिर शायद खुलकर बाते करता हमसे ---!नागार्जुन जी आदिवासी क्षेत्र में दौड़ा करके वहां की वस्तु स्थिति पर अपनी लेखनी को चलाने का काम दिया है। यह बताने का प्रयास किया है कि आदिवासी क्षेत्र में लोगों का जीवन किस प्रकार से चलता है रचना गरिमामय स्थान दिलाने का काम करती है।बिहार से लगा हुआ पश्चिम बंगाल का क्षेत्र सूखा और महामारी से महान विभीषिका झेला । पड़ोसी राज्य नीति वजह से बिहार भी उससे अछूता कैसे बच सकता है और वह भी एक कवि और लिख ये कलम से! गरीबी और बदहाली शोषण और लाचारी नी रचनाकार को लिखने के लिए मजबूर किया ।कई दिनों तक चूल्हा रोया/चक्की रही उदास।कई दिनों तक कानी कुत्तिया/सोई उसके पास।कई दिनों तक लगी/भीत पर छिपकली।मां की गश्त कई दिनों तक चूहों की/हाल रही शिकस्त।उन्होंने तत्कालीन महंगाई भुखमरी और सरकार द्वारा लगाए गए टैक्स पर शासन प्रशासन का ध्यान आकृष्ट कहने के लिए अपनी रचनाओं में लिखा-अन्न वस्त्र की मंहगाई से यों भी थे बेजार,कमर तोड देगी अब तो टैक्स की भरमार ।मत समझें इन नारों को बच्चों की चीख पुकार,दूर दूर से आए हैं हम मनवाने निज अधिकार ।नागार्जुन जी के रचना में देश प्रेम और जनपद के प्रति प्रेम की भी झलक दिखती है ।यथा -कहां मिलेगा ऐसा सुंदर देश?धन्य हमारा कौशल जनपद धन्य।मां सरयू नदी के किनारे के दृश्य का वर्णन करते हुए ऋषि मुनियों का भी विशेष ध्यान रखना जरूरी समझा।यथा -सरयू जल अभिसिंचित स्पीति समृद्ध।सूर नर मुनि मनमोहन परम ललाम।।जब सरयू जी का बयान हो रहा हो ऐसे में सरयू नदी के तट का रचनाकार अपनी कुछ पंक्तियां देना सर्वथा उचित समझता है ।एक रचना प्रस्तुत है-मां सरजू बहुत महान,यहां घूमते थके न राम।तीनों लोक करे गुणगान,हे मां! सरजू तुम्हें प्रणाम।----रामकथा सरजू के तीर,कहता सुनता होता वीर।सुख में उसका जीवन होता,वह होता धीर गंभीर।----देव लोक जैसा मनमोहक,सरयू तीर धरा है नारी।महिमा गान की किरपा पाकर,जन - जन हो जाय सुखारी।कल कल कल कल ध्वनि से,हरिहर का करती गुणगान,बहती जाती और बताती,भूत - भविष्य - वर्तमान।नागार्जुन जीने गांव के मन के अनुरूप लिखने का मन किया और निरस्ता में रस का संचार करने का प्रयत्न करते हुए प्रकृति की माध्यम से कल्याणकारी रचनाओं का लेखन किया।यथा -निकलेंगे झोपड़ी से छोकरे उमंग,रहेगा जामुन का सा देह का रंग।सिखाएंगे झरना को बहने का ढंग,ढलेंगे छंद मादल बांसुरी के संग।छोटी छोटी नदियां तब गाएंगी अभंग,लो यह उमड़ उमड़ आया बादल बदरंग।आपने आम आदमी के जीवन को भी बहुत करीब से छूने का प्रयत्न किया है आपकी एक रचना में है कि -प्राइवेट बस का ड्राइवर है/तो क्या हुआ।सात साल की बच्ची का/पिता तो है!सामने गियर से ऊपर/हुक से लटका रखी है।कांच की चार चूड़ियां गुलाबी/बस की रफ्तार के मुताबिक/हिलती रहती है।नागार्जुन जी ने जिन्हें प्रगतिशील जनवादी लेखक और रचनाकार के रूप में मुखरित होने का सौभाग्य मिला उनकी रचनाएं समाज को नई दिशा देने वाली मानवीय संवेदना को जैन जन तक पहुंचाने वाली सिद्धू हुई है।नागार्जुन की की रचनाएं को देखकर यह कहा जा सकता है कि-लोगों के लिए धर्मोंपदेश छपवाया,संयम नियम का बड़ा, पाठ पढ़ाया।दूर दूर तक धर्म , प्रचार कर आया,प्रचार से भलाई का मार्ग दिखाया।।आपने स्त्रियों पर पेड़ पौधों पर जनमानस के कल्याण हेतु, गरीबी, भुखमरी, भ्रष्टाचार, बदहाली, शोषण, सहीत प्रकृति के सौंदर्य का वर्णन करने का पूरा प्रयास किया है।
- सुख मंगल सिंह
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