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निर्जन निरीह एक आपबीती कहानी

 

निर्जन निरीह एक आपबीती कहानी


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Sukhmangal Singh 

10:29 AM (6 hours ago)




to me 






  निर्जन निरीह एक आपबीती  कहानीमैं कहाँ ! मैं कहाँ !कोई बताये ,कोई बचाये!
खेत ,खेत में कहीं कहीं बबूल के पेड़ ,जुता हुआ खेत , चारो तरफ जुट्टा (पतलो ) गाँव में जाते हुए कुछ कुत्तों जैसे जानवर परन्तु उनके मुँह लम्बे , मुँह बाए अधखुले मुख लिए दौड़ पड़े मेरी तरफ | हमने भी डंडा विहीन हाथ होने से, झट पट नीचे झुककर कुछ कर उठाने की चेष्टा लिए झुकता थापुये का छोटा टुकड़ा हाथ लगता उसी को उन झपट्ते मारने को दौड़े जानवरों पर चला देता था | किसी किसी समय तो कुछ हाथ न लगता तो धुल कंकड़ ही उठा कर फेक देता | पास में एक गाँव का व्यक्ति जब यह देखा तो उसने उन्हें डंडे से भगाया और कहा यह सियार हैं जिसे भी रात में अकेले में पा जाते हैं उन्हें अपना शिकार बना लेते हैं | मार कर खा जाते हैं | यह सब सुनकर मुझे मेरे पिताजी की बताई बात याद आने लगी कि घर से बाहर जाने पर हाथ में एक सोता डंडा रखना चाहिए | आज ज़माना बदलता रहा लोग फैशन में प्राचीनता भूलते जा रहे हैं | उस गाँव में पहुंचने तक कुछ लोग साथ में आगे पीछे चलते रहे खेत और लोगों के आगे निकलने से मैं उनके साथ नहीं निकल सका | में यह तय भी नहीं कर पाया था की जिस रास्ते से लोग जा रहे हैं वह रास्ता मेरे गंतब्य तक जाएगा | रात्रि होने को अन्धेरा घेरे आ रहा था | मुझे भूख भी लग गई थी मैंने देखा कि उसी गाँव के कच्चे रास्ते के किनारे दाना भुजता ,टिल गड़ बनाता एक भड़भूजा था ललक बढ़ी मैं भी बढ़ा उससे सौ ग्राम चना चूड़ा भूनकर देने को कहा ही था कि कुर्ता जाकेट के जेब टटोलने लगा और जब मेरा पर्श और एंड्राइड मोबाइल नहीं था जानकार होश उड़ गए और दुकानदार से भुजा न देने की बात कर डाली | मैं सोचने लगा अच्छा हुआ भड़भूजा ति ल - गुड़ में व्यस्त था नहीं तो कहता कि 'जेब में दमड़ी नहीं ,चले जगन्नाथ करने ' | इतना सोच ही रहा था कि उसने भुजा एक पोटली में थमाने लगा | हमें भी मौक़ा मिल गया था देर होने का , मैंने कहा देर किये रहने दो | भूख लगी ही थी पैसे खोजते समय कुर्ते के बाएं जेब में कुछ मक्के के चूरे और बादाम के दाने हाथ लगे थे उन्हें ही खाकर सत्तोष किया |मेरे पास टिफाक से मेरा छोटा मोबाइल साथ में था | उस समय मित्र जो भी दिल्ली में थे उनके नंबर खोजता वह नहीं मिलता था | यदि मिल भी जाता किसी का तो व्यस्त है मोबाइल से आवाज आती | देश के संचार मंत्री जी गाँव गाँव तक नेटवर्क पहुंचाने का दावा कई वर्षों से सुनते आ रहा हूँ परन्तु सब कुछ ढांक के दो पात की कहानी बन कर रह गए हैं | गावों में ब्रांड बैंड फैलाने के लिये अरबों खरबों में देश में खर्च किये जाते है और सन दो झज्जार सोलह से जिले जिले में महा प्रबंधक दूरसंचार भी बैठा दिए गए है और उनके कई कर्मचारी, ठीकेदार पूरा कार्यालय है उसमें भारत संचार निगम के अवकाश प्राप्त अधिकारी भी जो ठीकेदारों से साथ गाँठ से कार्य लेते थे काम में देखे जाते रहे हैं | शुरुआत में सड़कों के छोटे लाल -हरी ,पीली पीली पतली केवल तार फैले जमीदोज हो गए | आज केवल कार्यालय है अधिकारी कर्मचारी हैं मोटी तनख्वाह आती है कागज़ पर कार्य होता है | यही कारण रहा उस गाँव में जिसे' सियार 'उस जानवर को बताया और हमें हिंसक जानवर से मुक्त करायामें भी फोन की सुबिधा नहीं थी मोबाइल में नेटवर्क छोड़ देता था | मैंने उस व्यक्ति से पुछा यह हम कहाँ हैं कई लोग थे उस समय फिर भी कोई बोल नहीं रहा था न जाने लोग सहमें थे की छब्बीस जनवरी नजदीक है आतंकी गतिविधि वाला न हो यह व्यक्ति , या रात हो रही थी कहीं रुकने को न कह दे | जाड़े का महीना है सबके पास अतरिक्त विस्तार चारपाई इस विकास शील देश में भी कहाँ नसीब हो रही है | बड़े बढ़ रहे हैं और गरीब और गरीब हो रहा है थोड़ा सरकार ने ध्यान दिया कि छोटे किसान , गरीब ,दुकानदार को कुछ रूपये पेंशन के रूप में मिल जाते हैं | उन पैसों से अपना ही पेट किसी प्रकार भर जाय अब अतिथि जिन्हें हमारे देश में देवता का दर्जा प्राप्त है, मेरे बचपन तक माना भी जाता रहा है,कोई भी आ जाय उसे गुड़ - पानी, गन्ने का रस ,खाड़ का रस और दाना कराया जाता था उसके उपरांत ही प्रयोजन पूछा जाता रहा था | उसी देश में आज लोगों के विचारधारा बदल गया है कि उस व्यक्ति से जो घर आया है पहले प्रयोजन ही पूछा जाता है | उसके रास्ते में यदि दूकान पद गई तो चाय -पानी करके किसी के घर लोग जाते है नहीं मार्केट होने पर गाँव के बाहर हैण्डपंम्प खोज कर पानी पी कर ही किसी के दरवाजे पर जाते हैं | वहां जाकर हाल चाल लेकर लौट जाने का करते हैं | वह भाव , न वह चाव लोगों में हैं | जीव ईश्वर का अंश है , न जाने किस भेष में नारायण मिल जांय , सब कहावत रह गई है फिर भी दोष ईश्वर का ही देते है | वर्फबारी हो रही , ओला पड रहा , गर्मी में गर्मी से परेशान , भूस्खलन हो गया ,सूखा पड गया , नदियां सूख रही हैं अति वृष्टि से तबाही मचा रही है | हो रहा हा --- मैं दिल्ली में एक मीटिंग के सिलसिले में गया था | दो कमरे वाले गेस्ट हाउस में रुका था | वहां से पैदल ही मीटिंग हाल के लिए निकला था| मौसम काफी इन दिनों दिल्ली का खराब चल रहा है | प्रदूषण ने तो पूरे शहर को अपने आगोश में ले रखा है | इस समय बादल घनघोर छाये हुए है लोगों को लग रहा है कि थोड़ी बहुत वारिस हो जाय तो प्रदूषण में कमी आ सकती है | कुदरत को कौन जानता है कि कब क्या से क्या कर देंगा | जब मनुष्य का नहीं पता किसके साथ क्या कब कर बैठेगा तो प्रकृति भी उसी के हिसाब से बैलेंस बनाने को तत्पर रहती है| सीख सिखाती है| मन मानी करोगे तो हम भी नहीं छोडेगे | फिर भी लोग मानने को तैयार नहीं | यथा-
जनता से ,नेताओ से ,खड़ी फौरी फौजी पहरेदारों से!सम्हाल के रहना ,अपने देश में छुपे कथित गद्दारों से ! हाल में देश के प्रधान मंत्री ,गृह मंत्री ,बुद्धजीवी ,पत्र कार ,नेता सभी समझा रहे नागरिकता क़ानून संशोधन पर कि ' देश के किसी भी व्यक्ति का अहित इस क़ानून से नहीं होगा ' फिर भी मुस्लिमों में भरम दाल दिया गया है कि उन्हें देश से बाहर कर दिया जाएगा घर कर गया है बच्चे बच्चे में यह सब मुस्लिम देश विरोधी नेता ,कांग्रेस ,बांदल आदि द्वारा फैलाया गया भरमजाल कहा जा रहा है | जिसे प्रधान मंत्री सहित विभिन्न मीडिया साफा करके बता रही है की नुकशान नहीं होगा फिर भी नहीं मान रहे | मति कलयुगी हो चुकी है यही कहा जा सकता है | मैं आगे बढ़ा बादलों ने कहर ेऐसा ढाया कि सड़कों पर डूबने भर को पानी हो गया | मैं भी पानी को ठम्ह्ने पर कमर भर पानी मे गया ही था कि हिम्मत आगे बढ़ाने कि नहीं हुई | हालाकी पढ़ाई के समय नदी तैर कर पाँच वर्ष पढ़ाई किया था परंतु अब वह उम्र नहीं ,वह जोश नहीं ,वह जाज़्बा नहीं ,वह ताकत नहीं | और लौटा पीछे कुछ दूर करीब एक किलो मीटर जाने के बाद वह मेरा रास्ता नहीं समझकर फिर वापस आया चौराहे तक | वहाँ से बाएँ रास्ते पर एक किलोमीटर से कुछ अधिक जाने पर जब कि वह भी मेरे गंताव्य तक न ले जाने वाली राह जान कर कथित संदहा गाँव जो नही भी कहा जाता है जिसे उस व्यक्ति ने बताया है और वह भी कुछ सामी के बाद नदारत हो गया | रात्रि होती देख हमने चारपाई से घेरी गई जघ को फांद कर अपने सोने खाने की व्यवस्था करता परंतु वाहा तो एक नारी अपने दो बच्चों के साथ सो रही थी जो तुरंत जब कि एक पाँव ही खड़ी कि गई चारपाई पर मैं डाल पाया था | उस महिला ने कहा उधर ही कोई आदमी मिल सकता है | मैंने भी हड़बडा कर पर को पीछे किया उस आदमी को खोजने मे लग गया | निगाह इधर- उधर करता कुछ दूर चला पर ----!रख दूगी एक दिन, संसार बादल कर ,मैं नारी हूँ , नारी पुत्र को कैसे पालती है मैं महसूस करती हू ! जानती हूँ क्योकिमैं एक नारी हूँ !मेरी पत्नी महाराष्ट्र जा रही थीं | आज ही सबेरे चार बजे उन्हें कैंट स्टेशन वाराणसी से पूने के लिए ट्रेन पर बैठाकर आया था | वह वीर नारी है महाराष्ट्र मे इन दिनों जो लोग वीरों के लिये धारणा -प्रदर्शन , वीरता चक्र , सम्मान की मांग कराते आए राजनीतिक पार्टियों ने कलयुग के प्रभाव मेन आकार अपने वादों को भूलकर कुर्सी के होड मे लग गये और अपने इरादे को भूल बैठे हैं |ऐसे मे वीर नारी वह भी क्षत्राणी कैसे सहन कर सकती है उसके रगों मे वीरता के लहू लहलहाते रहते हैं | यहा यह कहना है कि वीर नारी हो अथवा पुरुष वह किसी भी प्रचार -प्रसार के पीछे नहीं दौड़ता वह अपना कारी चालाकी से , तरीके से करता रहता है यही कारण रहा है चाहे स्वतन्त्रता में भाग लेने वाले लोन हों अथवा मुस्लिम काल में नारियों ने आदमी साहस दिखाया | आज उन सबके सहादत को लोग भूल रहे है बहुतों का तो कोई नाम भी नहीं जानता | इतिहास बाम हाथ से आधा -अधूरा ही मिलता है | हम वीर सावरकर की बात करना चाहते हैं जिन्होंने अपनी वीरता के बदले काला पानी अंडमान द्वीप में बिताए और उन्हें भी कुर्सी की लालच ने भूलने को मजबूर कर दिया | जिसे हिन्दू के महान बात के धनी हिम्मत वाला दृढ़ इच्छा शक्ति वाले पूज्यनीय बाला साहब ठाकरे जी भी सम्मान से नमन कराते थे | कहा गया है भारत वह देश है -जहां सत्य,अहिंसा और धर्म का डगर डगर में डेरा वही भारत देश है मेरा ,वही भारत देश है मेरा |
ट्रेन से उतर कर विना किसी भी तरह के प्रचार - प्रसार के , मीडिया से दूर रहकर महाराष्ट्र की सोच को बदलने का कार्य करने का जज्बा लिये हुये जिसे कभी भी आप कहीं भी लिखित अलिखित किसी भी रूप में नहीं पाएंगे | परंतु वीर सावरकर को केंद्र से सम्मान देने की बात ढाई दिन ,ढाई माह ,ढाई वर्ष में आवाज जोर पकड़ने की पूरी -पूरी उम्मीद करता हीं | वीर सावरकर को समर्पित गीत जिसे नारिया भी गाती हैं -मत रो माता ,कल मैं नहीं रहूँगा , पर जब होगा,समाज , देश में उजाला ,तारों में तुझे दिखेगा ,हँसता हुआ नया सितारा |फिर जन्म लूगा ,लहराऊंगा तिरंगा प्यारा ,हँसकर बिदा करो माता ,बानूगा देश का फिर तारा | नारियों पर मुझे विश्वास है | गर्व है देवियों पर मुझे ! भारतीय नारी स्वाभिमानी ,समनानीत ,हर कठिन से कठिन काल खण्ड में दृढ़ता से डटी ,आदी रहने वाली होती हैं | इसी लिये तो हमारा शास्त्र कहता है नारी सभी जगह पूज्यनीय हैं | प्रमाथ सूत्र में - 'फल और आसक्ति को त्यागकर भगवान के आज्ञानुसार केवल भगवादर्थ समत्व बुद्धि से शास्त्र विहित कर्तव्य कर्मों का करना ही निष्काम कर्म योग का स्वरूप है |'(पेज78) उससे पहले रात्रि भर जागरण और दिन में सोना ही रात्रि के एक बजे जाग जाना और फिर चार से पाँच बजे मे जबकि उसी सामी देवताओं का धरा पर भ्रमण के दौरान मुझ जैसे को जो हर न्हाल में ब्रह्ममुहूरती में टीनबजे से जागने और अपने कर्म मेंलागजाने वाले को सोते देखकर यह स्वप्न दिखाई दिया | इसका मतलब पाठकों पर चूडता हूँ |- सुखमंगल सिंह ,अवध निवासी --
Sukhmangal Singh 

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