गंगा मरुथल ना बनने पाए /
'मंगल' पाताले गंगा चली न जाए |
शोर-शौर्य से गंगा साफ नहीं होती /
धर्म धैर्य धीरता कर्माने को धाया ?
गंगा की सफाई का वर्षों डंका पिटाया /
मौसम का मिजाज समझ ना पाया |
जगह जगह घाट बने - काशी भाया /
मेला- मिलन- मनोहर भी रचाया |
देश और परदेश से कसमें खाया /
धरा रेगिस्थान बनेगी समझाया |
गगनस्पर्शी शोर जोर दिखलाया /
फिर भी गंगाजल निर्मल कर पाया ?||
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Sukhmangal Singh
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