पत्थर कलेजे पर रख देखता रहा ,
जिसपर टिकी नीव वही लुटता रहा |
पत्थर पूजने दर दर भटकता रहा,
पिण्ड अपने आपमें नहीं दिखता रहा|
रत्नों की खान भी सभी पत्थर ही रहा,
बर्बाद फसलों पर वह ओला बन गिरा|
वह पत्थर वाट वाट महल बनाता रहा,
पसीना गरीब का ही सदा बहता रहा||
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Sukhmangal Singh
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