पिंगल गान
मानव शरीर प्राप्त कर,
जो जीव ना माने तू ही
प्रभु वर्णन स्मरण ना करें
स्वास धौकानी ताकी होय।
सभी वेद शास्त्र गाते
सद्गुण वर्णन आप की।
विद्वान सभी संसार के
कल्याणकारी गुण सुनते
स्मरण द्वारा प्रेम करते
आपके चरणों में स्मरण
कार्य संपूर्ण क्लेशों से
जीव मुक्त हो जाया करते।
ऋषि-मुनियों ने जो बताया
मानव सुनकर जो चलते
पद्धतियों का पालन करते
उधर में अपनी चिंतन करके!
प्रभु उनके चिंतन करने से
मृत्यु भय का नाश कर देते
वेद सदा हैं यही गान करते
सकल सद्गुणों के समुद्र आप।
यह नश्वर शरीर लेकर सदा
चलती रहती हो अपने साथ।
पिंगला ने जो गीत गाया
उसको देता हूं तुम्हें बताय
मैं इंद्रियों के अधन हो गई
मोहका हो गया मुझमें विस्तार
मैं दुष्ट पुरुषों से जिनका
अस्तित्व नहीं दुनिया में
विषय सुख की लालसा में
उनसे ही कर बैठी हूं प्यार।
कितनी दुख की बात है यह
नहीं सचमुच मुर्ख कहीं जाऊंगी
मेरे दिल में विराज रहे मेरे ही
मेरी सच्ची स्वामी भगवान।
प्रेम सुख और परमार्थ का सच्चा
देने वाला है वास्तविक धनवान।
जगत के साथ पुरुष हैं अनित्य
वही हैं केवल नित्य और महान।
हाय! हाय! मैंने छोड़ दिया क्यों
और कुछ मनुष्यों का सेवन किया।
कोई कामना पूरी नहीं कर सकते
उन्हीं को हमने क्यों अपना लिया।
जो दुख भय व्याधि हमें दे हों
शोक और मोह में हमें लेकर हों।
यही मूर्खता हमने कर ली है अब
उसका सेवन करती रहती हो !
शरीर और मन व्यर्थ में कलेश दिया
अपनी काया को पीड़ा पहुंचाई।
मेरी शरीर यह बिक गई है भाई
खरीद लिया निंदनीय मनुष्यआई!
मुझे धिक्कार है आ तुम्हें सुनाई
रति सुख में शरीर धन लगाई।
ऐसी कौन स्त्री अतिरिक्त है भाई
स्थूल शरीर को अपना प्रिय बनाई।
यह तो जीव मुक्ति की नगरी पाई
विदेह नगर मैं ही मूर्ख निकल आई।
आत्म दानी अकेली मैं ही जीवन पाई?
अविनाशी परम प्रीतम परमात्मा को
छोड़कर मनुष्य में ध्यान अपनी लगाई।
मेरे हिय में स्वामी और परमात्मा भाई
अपने आप को दे कर अब इन्हें पाई।
- सुख मंगल सिंह अवध निवासी
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