"प्रथम विश्व युद्ध का भारत पर प्रभाव"
28 जुलाई सन1914 से 11 नवंबर 18 तक घनघोर युद्ध चला,
जापान और रूस की युद्ध विभीषिका जिसको दुनिया ने देखा।
जर्मनी उस समय विश्व शक्ति के रूप में उभर रहा था,
विश्व ने बढ़ते खतरे को भांपकर सबका माथा ठनका।।
स्पेशल युद्ध के विजय से भारतीयों के मन में उमंग हुआ,
पश्चिमी शक्ति के ऊपर पूर्वी शक्ति का विजय का तरंग रहा।
युद्ध में फ्रांस रूस ब्रिटेन की सेना खड़ी जमी रही,
केंद्रीय शक्तियों में जर्मनी ऑस्ट्रेलिया हंगरी और बुल्गारिया मिली।
वर्ष 1970 में संयुक्त राज्य अमेरिका उसमें कूद पड़ा,
बरसों घोर संघर्ष के बाद जापान मित्र का विजय हुआ।
उन्नति की इस प्रतियोगिता में जापान पूरा सफल हुआ,
उसे युद्ध की विभीषिका का प्रत्यक्ष भारत पर असर नहीं पड़ा।।
इधर सन उन्नीस सौ पांच अगस्त में स्वदेशी जागरण ठाना,
अंग्रेजों को देश से बाहर करने का निर्णय जनता ने माना।
सन उन्नीस सौ छह में महात्मा गांधी संघर्ष में कूद पड़े,
कोलकाता के टाउन हाल से आंदोलन वे शुरू कर लीये।।
इस विश्व युद्ध आंदोलन में भारत को भाग नहीं लेना पड़ा,
फिर भी मानवता के संहार का दर्द भरे किस्से को जाना बड़ा।
हमें भी घोर अर्थ संकट का साझीदार बनना पड़ा,
प्रभाव आर्थिक जीवन पर ही नहीं मानसिक आध्यात्मिक पर पड़ा।।
यद्यपि भारतीय साहित्य पर उसकी छाप तनिक भी नहीं मिला,
परंतु मानवतावादी धारणा का प्रादुर्भाव भारत में हुआ।
पूर्वजों के नैतिक मानवता से अलग उदार मानवता का उदय हुआ,
भारत ने अंतर्राष्ट्रीय भावना से विश्व का अभिन्न देश खुद ही जाना।।
पश्चिमी समाज की जानकारियों को समझने का संयोग मिला,
जातीय और देश की सीमा से बाहर धार्मिक संकीर्णता दूर हुई।
जर्मन फ्रांसीसी रूसी साहित्य और जनता से सुपरचित्र हुआ,
इससे पहले अंग्रेजी -अंग्रेज को देखने समझने का अवसर दिया।।
भारतीयों को व्यापक क्षितिज देखने की दृष्टि मिली,
राष्ट्रीय गुण और जीवन पद्धति की अवधारणा बदलने लगी।
विस्तारबादी उम्मीद लिए चीन जैसे मनमानी पर उतर आया,
उस समय जर्मनी को उभरते खतरे के रूप में विश्व देख लिया।।
- सुख मंगल सिंह अवध निवासी
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