यशस्वी उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने निर्बल -निम्न वर्गों की समस्याओं को कलम वद्ध किया और अपनी वाणी दी | स्वार्थ से परे नारी को पुरुषों की तुलना में अधिक महत्व दिया | स्त्री समस्या के विविध आयाम हैं यथा - आधुनिक शिक्षा व भारतीय नारी पर पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव अनमेल विवाह ,अनमेल विवाह के दुष्परिणाम ,प्रौढ़ पति का पत्नी पर असंतोष ,प्रौढ़ पति से विवाहित युवती का असंतोष ,विधवा विवाह ,विवाह पूर्व मातृत्व की संभावना , विवाह पूर्व मातृत्व , राजनीतिक भागीदारी और समस्या ,अल्प आयु में विवाह आदि |
प्रेमचंद ने जगह -जगह अनुभवों का भी वर्णन किया | कर्मभूमि में प्रतिक्रया अपने अनुभवों से की है | वह अमरकांत और सकीना को आलिंगनबद्ध देख लेखक लिखता है 'उसका सूखा ,चिपका हुआ मुंख तमतमा उठा |सारी झुर्रियां, सारी सिकुड़ने जैसे भीतर की गरमी से तन उठी | गली-बुझी हुई आखें जैसे जल उठीं|आँखें निकलकर बोली |' वे अन्तः प्रेरणा ,अंतर्द्वंद और अन्त्र्विवाद का ही प्रयोग करते हैं | वह पात्रों के परस्पर विरोधी आचरणों को तर्कसंगत बताते हैं (प्रेमचंद पथ २०१४ अंक २ )|
नारी में त्याग,क्षमा,अहिंसा जीवन के उच्चतम आदर्श होते है जिसे इस आदर्श को नातियाँ प्राप्त कर चुकी हैं | यह सभी गुण पुरुष में भी रहने चाहिए |
उनके निर्मला उपन्यास की कहानी में पिटा की मृत्यु और दहेज़ देने की अस्मर्थता की वजह से विवाह दोहाजू तोताराम से होना | बाल पके तोंद निकली उम्र लगभग चालीस की उधर निर्मला मात्र पंद्रह वर्ष की गुडिया ,गुड्डा खेलती रही |बचपन के खेल -खिलौने बिखर गए अभिलाषाएं नष्ट हो गए सैर सपाटे खत्म हो गए ,उसका अपनी बहन कृष्णा के साथ बघ्घी में जाना रुक गया , आ गया जीवन में मानों एक कहर तोताराम पति के रूप में | पीरा की उम्र का तोताराम ले लाख प्रयासों रिझाने के विविध उपायों के बाद भी निर्मला हंसने -बोलने में उससे संकोच करती |
उधर निर्मला का अंतर्मन जब वह वस्त्र आभूषणों से अलंकृत होकर आईने के समक्ष खड़ी होता अपने सौन्दर्य की सुषमा पूर्ण आभा देखती ,तो उसका ह्रदय संतृप्त कामना से तडप उठता | इस प्रकार स्त्री जीवन का यथार्थ निर्मला के माध्यम से मुंसी प्रेमचंद ने प्रस्तुत किया |
शिवरानी देवी :प्रेमचंद घर में लिखिन - मैं तो यहाँ तक समझता हूँ कि कोई पुरुष बिना स्त्री के कुछ भी नहीं कर सकता जबतक स्त्रियों का हाथ किसी काम में नहीं लगेगा तब तक कोई भी काम पूरा नहीं पड सकता |जब घर घर की स्त्रियाँ और पुरुष हिन्दुस्तान की तरक्की में लगेंगे तभी कायाकल्प होगा ' | मुंसीजी ने ऐयारी और तिलस्मी साहित्य से अलग वास्तविक वातावरण और परिवेश अपने साहित्य का माध्यम बनाया |
शतरंज के खिलाड़ी में बेगम मिर्जा से कहती है -क्या जैसे वह निखात्त्हू है ,वैसे ही सबको समझते हैं ?उसके भी तो बाल बच्चे हैं ;या सबका सफाया कर डाला ?
मिर्जा बोले -बदा लती है | जब आ जाता है ,तब मजबूर होकर मुझे भी खेलना ही पड़ता है |
बेगम बेवाक कहती है -दुद्कार क्यों नहीं देते ? और उधर मिर्जा मुलाहिजे की बात करना पड़ता है कहता है |
बेगम - तो मैं ही दुद्कार देती हूँ नाराज हो जाएंगे ,हो जाएं| कौन किसी की रोटियाँ चला देता है | हिरिया जा शतरंज उठा ला और मेरे साहब से कहना मियाँ अब न खेलेगें | आगे मिर्जा के रोकने के प्रयास को विफल करती हुई हिरिया ....
यह कहकर बेगम साहबा झल्लाई हुई दीवानखाने की तरफ चलीं |
मिर्जा बेचारे का रंग उड़ गया | बी बी की मिन्नतें करने लगे -खुदा के लिए रुक जा तुम्हें हजरत हुसेन की कसम |.......दरवाजा बंद हुआ,तो मिर्जा समझ गए ,बेगम साहबा बिगड़ गई |
मिर्जा ने चुपके से चुपके से घर की राह ली | मिर्जा जाते समय बोले तुमने गजब किया |
बेगम ने कहा -अब मीर साहब इधर आए ,तो खड़े खड़े निकलवा दूंगी | इतनी लौ खुदा से लगाते ,तो क्या गरीब हो जाते !(मधुकरी ,हिंदी कहानी -गंगा पृष्ठ ६२ )
प्रेमचंद शिक्षा विभाग में सब-डिप्टी इंस्पेक्टर जिला हमीरपुर में तैनात थे उन दिनों के १९०९ में छपी पुस्तक 'सोजेवतन' की पेशी में ३०-४० मील बैलगाड़ी पर चलकर जिलाधीश के परवाने पर दुसरे दिन साहब से मिले |
साहब द्वारा कहानी का आशय पूछने के उपरांत ''सिडिशन भरा है कहानी में' और सोजेवतन' की प्रतियां सरकार के हवाले करने का हुक्म हो गया | साहब के कार्यालय में बिक्री से बची सात सौ प्रतियाँ साहब के हवाले कर दिया |
साहब ने जिले के अन्य अधिकारियों से परामर्श किया | एक बैठक हुई जिसमे सुपरिडेंट पुलिस ,दो डिप्टी कलेक्टर और डिप्टी इस्पेक्टर !
स्नेहिल डिप्टी इस्पेक्टर साहब की रिपोर्ट थी 'रिपोर्ट में लिखा था की लेखक केवल कलम का उग्र है और राजनैतिक आन्दोलन से उसका सम्बन्ध नहीं है' | तथापि पुलिस स्वभावानुसार पैतरे बदलते रहे और सोजेवतन की बची हुई प्रतियां जला दी गई |
निर्मला अभी पंद्रह वर्षकी ही हुई है वह गंभीर एकांत प्रिय और लज्जाशील स्वभाव की गुडिया सी कन्या है | बाबू उदयभानुलाल निर्मला की शादी के लिए सपने साजो रहे थे कि भाबू भाल चन्द्र सिन्हा के जेष्ठ पुत्र भुवन मोहन सिन्हा से शादी की बात पक्की हो जाती है | जबकि निर्मला के यौवन में अभी पूर्ण प्रकाश तक नहीं आया हुआ था | निर्मला की शादी में दहेज़ की बात नहीं थी |
निर्मला उपन्यास में विविध प्रकार की स्त्रियों का वर्णन आया है जैसे रंगीली ,कल्याणी ,निर्मला,कृष्णा और सुधा आदि |
उदयभानु कल्याणी (पत्नी)से कहता है -'ऐसे मर्द और होंगे जो औरतों के इशारों पर नाचते होंगे' |
कल्याणी प्रतिक्रिया में कहती है कि-' ऐसी स्त्रियाँ भी और होंगी जो मर्दों जूतियाँ सहा करती हैं'|
इससे पूर्व उदयभानु लाल कहता है -'तो मैं क्या तुम्हारा गुलाम हूँ ?
कल्याणी भी तपाक से जवाब में -'तो क्या मैं तुम्हारी लौड़ी हूँ ?
झगड़े के क्रमवार चलते रहने के दरम्यान उदयभानु लाल का निधन हो जाता है जब की इसी बात को लेकर कल्याणी सोच-सोचकर पश्चाताप भी करती है | उपन्यास में निर्मला के माता -पिता के झगड़ों से भरा है |
रंगीली बाई मानों यह दिखाना चाहती है कि हमारे समाज में स्त्रियाँ पतियों को नचा भी सकती हैं | रंगीली बाई पति को डपट कर कहती है -'क्यों जी तुम मुझसे भी लड़ते हो, दाई के पेट छिपाते हो ?मैं तुम्हारी बातें मान जाती हूँ ,तो तुम समझते हो इसे चकमा दिया ,पर मैं तुम्हारी एक -एक नस पहचानती हूँ |'
सुखदास के सातवें अध्याय में अनाथ कन्या को लेकर प्रसूत -ज्वर से पीड़ित रहने के बाद भी अपनी जीवनाभिलाषा लिए कम से कम उसका पिता तो इसकी रक्षा करेगा सोचकर रात के अँधेरे में भूख,प्यास और ज्वर से जर्जर शरीर लिए लालपुर के निकट आ पहुची | वह दो सौ कदम और चल पाती तो सुखदास का मकान मिल जाता | परन्तु वह वहां से उठ न सकी | उधर उसकी नन्ही कन्या को इश्वर बल बुद्धि देता है वह सुखदास के पास पहुच जाती है और उसका हाथ -पकड-पकडकर उस तरफ इशारे करना शुरू किया |.........
'चारो तरफ से आदमियों से घिरे सुखदास ..लोग पूछने लगे -यह किसकी लड़की है ? कौन स्त्री मर गई ? किसका बच्चा है?
सुखदास लड़की को हृदय से लगाए हुए चुपचाप खड़ा था |
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Sukhmangal Singh
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