Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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प्यार करता हूँ

 

प्यार करता दुलार करता हूं

ऐ वतन जां निसार करता हूं।
राह में मील सा मैं पत्थर हूं
ठोकरें देके वार करता हूं।।
'मंगल 'आखरी दम तक दुवाएं करता हूं।

बहार फसलें उगाता सदा मुहब्बत में
मीत नादां तेरा एतवार करता हूं।
वजूद कायम रहे यही तो रवानी है
ताप हरने को झरने सा सदा झरता हूं।।

प्यार करता दुलार करता हूं
नमी आंखों में प्यार करता हूं।
राहें उल्फत में मील का पत्थर
ठोकरें देकर वार करता हूं।।

बीज नफरत की बो उठे कोई
ऐ वतन जां निसार करता हूं।
गम की दरिया में रवानी है चुभन
हा टीस बेजार करता हूं।।

फरेब को उनको डुबो देता हूं
'मंगल ' आखरी दम तक बलाएं हरता हूं।।
- सुख मंगल सिंह 

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