Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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राजा पृथु की स्तुति

 

" राजा पृथु की स्तुति "

पृथु  बोले ! सुन स्तुति गान 
जो कहता सुनें ध्यान
मैं अभी से श्रेष्ठ कर्म समर्थ नहीं
की मेरा हो कीर्तिमान।

कर्म सुकर्म भगत जगत का
कवि हूं मैं सरयू - तट का ।

यह सुन सूत आदि सब गायक
हर्षित हुए मन ही मन नायक
कहीं आप देवव्रत नारायण
आप हैं गुणगान के लायक।

प्राकट्य कला अवतार हरी घट का
कवि हूं मैं सरयू - तट का।

आपका  भू - स्वर्ग  - पाताल
दुष्टों को खा जाएगा काल
चमकेगा जन-जन का भाल
सब की सब होंगे खुशहाल।

भाग्य जगेगा कूड़े करकट का
कवि हूं मैं सरयू - तट का।

धर्म मार्ग में निकल कर
निरअपराधी को दंड न देंगे
सूर्य की किरणें जहां तक होंगी
आपका यश राज करेगा।

बिंदु न कोई छल कपट का
कवि हूं मैं सरयू - तट का।

शिव अग्रज सनक आदि मुनीश्वर
माथे चरणों दक चढ़ाएंगे
स्वर्ग सिंहासन पर उन्हें आप
   सासम्मन बिठाएंगे।
   शब्द अर्थ होगा उद्भट का
   कवि हूं मैं सरयू - तट का।
    
    पर ब्रह्म का प्राप्ति मार्ग
     श्री सनत कुमार बताएंगे
      सरस्वती - उद्गम स्थल पर
     अश्वमेध यज्ञ कराएंगे।
      सींचे खेती ,पानी पुरवट का
      कवि हूं मैं सरयू - तट का।

      अन्न  औषधि छिपा के पृथ्वी
      सृष्टि में, रूप बदल कर डाले
      प्रजा भूख , से हो गई व्याकुल
      श्री मैत्रेय , विदुर से बोले।
     जीवन सभी का अटका - अटका
       कवि हूं मैं सरयू - तट का।
       - सुख मंगल सिंह


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