शास्र घर अपना है /
बचाने की सोचये |
खिसके न कोई ईट/
जमानें की सोचिये |
मंदिर तो इसे समझो/
काबा इसे न सोचिए|
राम के इस नगर को/
सजाने की सोचिये |
गिरजा ई अपना औ /
गुरुद्वारा वह ही है |
सब मिल बैठकर प्यारे /
सुलझाने क सोचिये ||
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Sukhmangal Singh
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